Book Title: Sanskar Bhaskar
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit संस्कार॥२६४॥ छONAGACASन्छन् alu१॥इतिमंत्रणसंपूज्यवधूपदंक्रामयति॥ॐ एकमिषेविष्णुस्त्वानयतु॥ इतिवरेणोक्ते जास्कर. नमंत्रणवधूदक्षिणैकपदंदद्यादुदक्॥तदनंतरंवामपादव्यर्थ॥पुनर्दक्षिणपददानमंत्रमु / का॥एवंसर्वत्र॥ॐ द्वेऽऊर्जेविष्णुस्त्वानयतुइतिद्वितीय॥ॐ त्रीणिरायस्पोषायविष्णु / स्त्वानयतु // इतितृतीयं // ॐ चत्वारिमायोभवायविष्णुस्त्वानयतुइतिचतुर्थं ॥ॐ पंचपशुभ्योविष्णुस्त्वानयतु // इतिपंचमं // ॐ षड्रायस्पोपायविष्णुस्त्वानयतुइ।। तिषष्ठंॐ सखेसप्तपदाभवसामामनुव्रताभव विष्णुस्त्वानयतु॥इतिसप्तमं // परिक मणेनस्वस्थानोपवेशनं ॥केचित्प्रतिपदेकन्ययैकैकप्रतिज्ञामंत्रः पठनीयस्तेचयथा॥ सुखदुःखानिसर्वाणिवयासहविभज्यते॥ यत्रत्वंतदहंतत्रप्रथमेसाब्रवीदिदं // 1 // | // 26 // कुंटुंबंरक्षयिष्यामिआरडवालकादिकं // अस्तिनास्तीतिपश्याद्वितीये० // 2 // भर्तृभक्तिरतानित्यंसदैवप्रियभाषिणी // भविष्यामिपदेचैवतृतीये०॥३॥ आर्तेआ है ROOAAAAAAA For Private and Personal Use Only

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