Book Title: Sanskar Bhaskar
Author(s):
Publisher:
View full book text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शतिः॥पुनःपश्चादने प्राग्वदुपविश्यवरोब्रह्मान्वारब्धःप्राजापत्यहोमकुर्यात्॥ॐप्रजा का पतयेस्वाहाइदंप्रजापतयेनममतिप्रोक्षण्यांत्यागः॥अनेरुत्तरतःअथैनांवधूमुदीचीर्छ / सप्तपदानिप्रक्रामयतिवरोवक्ष्यमाणमंत्रैः॥शिष्टाचाराद्वेयुत्तस्त वेदीमारभ्यउत्तरो। हात्तरंहस्तांतरालेधान्यसप्ताचलान्कृत्वावर प्रतिपदसीत्यनेनमंत्रणसंपूज्य // तेषुवधू प्रतिज्ञापाठनपुरःसरंमंत्रंपठित्वावध्वादक्षिणपादस्पर्शयतियाम्यमारभ्यउदक्संस्थं / उत्तरतउत्तरं। वरःदेशकालकीर्तनांतेप्रतिगृहीतस्वदारसिद्ध्यर्थसप्ताचलपूजनंकरि ष्ये // ॐप्रतिपदसिप्रतिपदैखानुपर्दस्यनुपदैवासुंपदसिसुंपदेत्वातेजोसितेजसेत्वा / 1 अग्नरुत्तरतःएनांवधूंदक्षिणपादेनसप्तवारंपरिक्रमणकारयतीतिहरिहरगदाधरादयः // कुमार्यादक्षि Mallपादंगृहीत्वास्थापयतीत्यन्ये // विष्णुस्त्वानयत्वितिषड्मंत्रेष्वनुषज्यतेनसप्तमेइतिकर्कः॥ प्रक्रबुवाम पादस्यनाक्रमणमितिरेणुदीक्षितः // अन्येषांभाष्यकाराणांचमतेविष्णुपदस्यानुषंगः॥ 0 00000RRORota For Private and Personal Use Only F

Page Navigation
1 ... 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530