Book Title: Samyktotsav Jaysenam Vijaysen
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Rupchandji Chagniramji Sancheti

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Page 12
________________ जवि N! भणी।पोषे दे विद्या नीति क्षेम । चोर अन्यायी दुष्ट को सो । हरण करीले प्रेम । सम ॥८॥ सत्कार प्रसार के । पोषे अनाथ अपंग ने बाल । संपादित सब प्रेम को। कियो निज शुभ गुण नृपाल । सम ॥ ६ ॥श्रीकान्ता श्री दत्ता श्रीमति । यह तीनों है पटनार। रूप कला शील विनय दया से । वश हवा नृप परिवार॥ सम॥१०॥ श्री कान्ता श्री दत्ता एकदा जी। सूती सुख सेजा मांय ।शार्दूलसिंह स्वपने लख्यो। शीघ्र जागृत होइ हर्षाय । सम ॥११॥ उभय २ राणी एकी समय जी। भूप को प्राइ जणाय । हर्षानंदे वदे राजवी । अब उणार्थ पूर्ण थाय । सम ॥ १२ ॥ पुत्र प्रसव सो सिंह समा। कुल केतू दिन कर आधार । अंजली युत राज्ञी कहे । येही इच्छा पडो वाक्य पार । सम ॥ १३ ॥ ले अाज्ञा निज स्थाने गइ जी। धर्म जागरणा कनि । पाते शभा सजाय के । नृप पण्डित बोलाये प्रवीन । सम॥ १४ ॥ पूछा अथे स्वमा तणा।ते शास्त्र जो करे उचार। तीस ३० उत्तम बेचाली ४२ अधम। बहोत्तर स्वप्ना शास्त्र मझार । सम ॥ १५ ॥ अत्युत्तम चउदह स्वप्न देखे । तीर्थंकर की मात । सात ना

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