Book Title: Samdarshi Acharya Haribhadra
Author(s): Jinvijay, Sukhlal Sanghavi, Shantilal M Jain
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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तैयार हो जाय । इस उपचार मे न पडकर मेरे हृदय मे उनका जो स्थान एवं मान अकित है उसका संकेत करके मै सन्तोष मानता हूँ।
परन्तु सकेतमात्र से सन्तोष मानने के बाद भी चारेक नामों का यहाँ निर्देश करना मुझे अनिवार्य लगता है। कवि-प्राध्यापक श्री उमाशंकर जोशी तथा प्राध्यापक डॉ० श्री मनसुखलाल झवेरी इन दोनो का हार्दिक आग्रह इतना अधिक था कि मैं वम्बई विश्वविद्यालय का निमंत्रण स्वीकार करने के लिए उत्सुक हुआ । श्री भो. जे. विद्याभवन के डाइरेक्टर और मेरे सदा के विद्यासखा श्रीयुत रसिकमाई छो परीख और श्री लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर के डाइरेक्टर पं. श्री दलमुखभाई मालवणिया इन दोनो ने मेरे व्याख्यान सुनकर आवश्यक सूचनाएं की हैं। मै इन चारो विद्वानो का विशेष रूप से कृतज्ञ हूँ।
सरित्कुज, पाश्रम रोड, अहमदाबाद-६. ता० ३० जून, १९६१
सुखलाल संघवी
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