Book Title: Samdarshi Acharya Haribhadra
Author(s): Jinvijay, Sukhlal Sanghavi, Shantilal M Jain
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 122
________________ परिशिष्ट-२ प्राचार्य हरिभद्र के ग्रन्थों की तालिका * १. जिन ग्रन्थो के आगे + ऐमा जमा का चिह्न प्राता है वे अनुपलब्ध हैं, परन्तु उनके नाम दूसरे ग्रन्थों मे मिलते है । २. जिन ग्रन्थो के साथ "प्राकृत" लिखा है वे प्राकृत भाषा के है; अवशिष्ट संस्कृत भाषा के। आगम की टीकाएँ १. अनुयोगद्वार विवृति ५. जीवाभिगमसूत्र लघुवृत्ति +२. अावश्यक बृहत् टीका । ६. दशवकालिकटीका ३. आवश्यकसूत्र विवृत्ति ७. नन्द्यध्ययनटीका ४ चैत्यवन्दनसूत्रवृत्ति अथवा ललित- +८. पिण्डनियुक्तिवृत्ति । ६ प्रज्ञापनाप्रदेशव्याख्या विस्तरा आगमिक प्रकरण, प्राचार, उपदेश १. अप्टकप्रकरण ८. लघुक्षेत्रसमास या जम्बूद्वीप२. उपदेशपद (प्राकृत) क्षेत्रसमासवृत्ति ३. धर्मबिन्दु +६ वर्गकेवलिसूत्रवृत्ति ४. पंचवस्तु (प्राकृत) (स्वोपज्ञ संस्कृत १०. बीस विशिकाएं (प्राकृत) ____टीका युक्त) ११. श्रावकधर्मविधिप्रकरण (प्राकृत) ५. पंचसूत्र व्याख्या १२. श्रावकप्राप्तिवृत्ति ६.पंचाशक (प्राकृत) १३. सम्बोधप्रकरण (प्राकृत) +७. भावनासिद्धि १४ हिंसाष्टक (स्वोपज्ञ अवचूरियुक्त) * योगशतक परिशिष्ट ६ के आधार पर, कतिपय परिवर्तनो के साथ । श्री वीराचार्य-रचित पिण्डनियुक्ति टीका की प्रारम्भ की उत्थानिका मे स्वय श्री वीराचार्य के द्वारा किये गये उल्लेख के अनुसार ऐसा ज्ञात होता है कि आ० हरिभद्र ने पिण्डनियुक्ति की स्थापनादोप' तक की वृत्ति लिखी थी, और अवशिष्ट ग्रन्थ की वृत्ति दूसरे किसी वीराचार्य ने पूर्ण की थी। वे मूल श्लोक इस प्रकार हैं:-- पचासकादिशास्त्रव्यूहप्रविधायिका विवृतिमस्या. । पारेभिरे विधातु पूर्व हरिभद्रसूरिवरा ॥७॥ ते स्थापनाख्यदोप यावद्विवृति विधाय दिवमगमन् । तदुपरितनी च कश्चिद्वीराचार्य. समाप्येपा ॥८॥

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