Book Title: Samdarshi Acharya Haribhadra
Author(s): Jinvijay, Sukhlal Sanghavi, Shantilal M Jain
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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समदर्शी प्राचार्य हरिभद्र अभिनिवेश नही रहता और दर्शनभेद के रहने पर भी भिन्न-भिन्न दर्शनो के विभिन्न आन्तरिक बाह्य कारणो की समझ प्रकट होती है, जिससे उन सभी दर्शनों के प्रति यथार्थ सहानुभूति और समभाव पैदा होता है । इस तत्त्वका विशद निरूपण करने के लिए हरिभद्र ने योगदृष्टिसमुच्चय मे शास्त्री एवं पंथों में प्रचलित मतभेदों और व्याख्याभेदों का भूमिका के भेद के अनुसार विस्तार से समन्वय किया है। हम यहाँ उनमे से कुछ दृष्टान्त उद्धृत करेगे
(१) हरिभद्र अपनी आठ दृष्टियों की पतंजलिवर्णित पाठ योगाग के साथ तुलना करते है ।१४ इस तुलना मे उन्होने यम आदि, अखेद आदि१५ और अद्वेष अादि १६ तीन अष्टको का वर्णन किया है । इसी के साथ, पूर्वनिर्दिष्ट पतंजलि, भास्करवन्धु एवं दत्त जैसे योगाचार्यों के नाम दिये हैं। इस पर से ऐसा प्रतीत होता है कि इन तीन अष्टको का उक्त तीन आचार्यों के साथ क्रमश संबंध हो और उसी को उन्होने अपनी आठ दृष्टियो के साथ जोडा भी हो । यह चाहे जो हो, परन्तु इतना तो स्पष्ट है कि हरिभद्र की तुलनादृष्टि विशेष विस्तृत होती जाती है ।
(२) गीता आदि अनेक ग्रन्थो मे 'संन्यास' पद बहुत प्रसिद्ध है । हरिभद्र के पहले किसी जैन आचार्य ने इसको स्वीकार किया हो ऐसा नहीं लगता। हरिभद्र इस 'संन्यास' शब्द को अपनाते हैं, इतना ही नही, धर्म-संन्यास, योग-संन्यास और सर्वसंन्यास के रूप मे त्रिविध संन्यास का निरूपण करके १८ वे ऐसा सूचित करते हैं कि जैन परम्परा मे गुणस्थान के नाम से जिस विकासक्रम का वर्णन आता है वह इस त्रिविध संन्यास मे आ जाता है। आगे जाकर हरिभद्र ने असंगानुष्ठान का निरूपण किया है और वे कहते हैं कि ऐसा अनुष्ठान अनेक परम्परानो मे भिन्न-भिन्न नाम
१४. 'योगदृप्टिसमुच्चय' श्लोक १६ से । १५ खेदो गक्षेपोत्यानभ्रान्त्यन्यमुद्र गासगे । युक्तानि हि चित्तानि प्रपचतो वर्जयेन्मतिमान् ।
-योगदृष्टिसमुच्चय श्लोक १६ की टीका मे उद्धृत श्लोक । अद्वेषो जिज्ञासा शुश्रूषा श्रवणवोधमीमासा । परिशुद्धा प्रतिपत्ति प्रवृत्तिरष्टात्मिका तत्त्वे ।।
___-योगदृष्टिसमुच्चय श्लोक १६ की टीका मे उद्धृत श्लोक । १७ देखो पादटीप ५। १८. 'योगदृष्टिसमुच्चय' ६-११ तथा 'योगवासिष्ठसार' ( गुजराती ) पृ०
३१७ एव ३२६ । १६ 'योगदृष्टिसमुच्चय' १७३ ।