Book Title: Samdarshi Acharya Haribhadra
Author(s): Jinvijay, Sukhlal Sanghavi, Shantilal M Jain
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 34
________________ २०] समदर्शी प्राचार्य हरिभद्र के ही हो अथवा बाहर से आये हो, चाहे जो माने, परन्तु एक बात सुनिश्चित है कि प्रारम्भ मे वह आर्यवर्ग बहुत छोटा था और पश्चिमोत्तर प्रदेश के अमुक भाग में ही वसा हुआ था । इस वर्ग के अतिरिक्त ऐसी दूसरी अनेक जातिया इस देश मे थी और बाहर से आकर यहा बस गई थी, जो इतिहासक्रम मे आर्यवर्ग से पहले की पूर्ववर्ती थी। ऐसी जातियो के भिन्न भिन्न नाम से उल्लेख वैदिक वाङ्मय मे मिलते है । वैदिक आर्य उन जातियो को आर्येतर ही मानते रहे है ५ । ऐसी प्राचीनतर और प्राचीनतम जातियो मे नेग्रोटो, ऑस्ट्रिक, द्राविड और मंगोल मुख्य है। इनमे से ऑस्ट्रिक निपाद के नाम से, द्राविड दासदस्यु के नाम से और मगोल किरात के नाम से व्यवहृत हुए है ६ । आर्यवर्ग छोटा था, जबकि ये पूर्ववर्ती जातिया उसकी अपेक्षा अधिक बडी थी और विशाल प्रदेश पर फैली हुई थी। पूर्ववर्ती प्रजाओ का आपस आपस मे रक्त-मिश्रण एवं सास्कृतिक आदान-प्रदान होता होगा इसमे शंका नही है, फिर भी वैदिक आर्यों के आगमन अथवा स्थिर निवास एवं प्रसरण के साथ वह मिश्रण और आदान-प्रदान और भी अधिक तीव्र हुअा " । इस मिश्रण के अनेक पहलू है। भाषा, रक्त-सम्बन्ध, सस्कृति और धर्म इन सभी क्षेत्रो मे मिश्रण के परिणामस्वरूप एक अद्भुत रसायन निर्मित हुआ है जो आज की भारतीय प्रजा मे दृष्टिगोचर होता है । वैदिक आर्यों की कवि-भाषा या शिष्ट-भाषा संस्कृत थी, इसका दूसरा रूप तत्कालीन प्राकृत था। परन्तु इस भापा ने पूर्ववर्ती जातियो की सभी भाषाओं का स्थान लिया । यह स्थान लेने मे उसने पूर्ववर्ती भिन्न-भिन्न भाषामो के अनेक तत्व अपना लिये और अपने कलेवर को इतना अधिक शक्तिशाली बनाया कि अन्त मे दूसरी भापाएं उस सस्कृत, तद्भव या तत्सम प्राकृत के प्रभाव मे और प्रवाह मे ४ 'Vedic Age' The Tribes in Rigveda, p 245 ५ दास, दस्यु, परिण आदिको आर्येतर माना जाता है। देखो वही, पृ २४८-५० । ६ वही Race movements and Prehistoric Culture, p 142 ff, Dr Sunitikumar Chatterji Presidential Address, All-India Oriental Conference, 1953, p 11-17 ७ डा सुनीतकुमार चटर्जी का उपर्युक्त व्याख्यान पृ. २० "The racial fusion that started in India with great vigour some 3500 years ago, after the advent of the Aryans, was wider in scope than anywhere else in the world, with the white, brown, black and yellow peoples, Aryas, Dravidas, Nishadas and Kiratas, all being included in it This kind of miscegenation, together with the admission into India of various other types of culture and religious out-look, has perhaps made the average Indian more cosmopolitan in his physical and mental composition than a representative of any other nation"

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