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[ समयसुन्दर रासत्रय
ध्यान निरंजन ध्याय धरमी, उत्कृष्टी रहणी रहइ, आकरी आतापना करी नइ दिन प्रतइ देही दहइ । ए ढाल त्रीजी समयसुन्दर, जाति जकड़ी नी भणी, सोमचंद रिपि धारिणी सेती, तपस्या करइ तापस तणी || ११|| [ सर्व गा० ५४ ]
दूहा ५ रहतां आश्रमइ, सोमचंद
इण परि सुविचार, निरख्यउ ग्रभ नारीतणउ, पूछ्यउ कुंण प्रकार ॥ १ ॥ कुल कलंक दीसइ किसउ, कहइ राणी सुणि कंत । गृहस्थ थकां नउ ए गरम, मत बीहे मनि मंत्र ॥ २ दीक्षा लेतां दाखवुं, तो व्रत परइ अंतराय । सूधुं माहरु सील छइ, सोनइ साबि न मासे तापसी, सुत जायउ
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थाय ॥ ३ ॥
पूरे
सुकमाल |
माता
ततकाल ॥ ४ ॥
मंदेवाड़ पड़ी मुई, ते पड़ी वलकल चीर सुं बीटियो, जात मात्र अंगजात । वलकलचीरी एहव, नाम दियउ निज
तात ॥ ५ ॥ [ सर्व गा० ५६ ]
ढाल ( ४ ) राग काफी धन्यासिरी मिश्र, जाइ रे जीउरा निकसकइ एहनी ढाल, दुनीचंद ना गीत नी ढाल वलकलचीरी वालह, मोटउ करइ धावि मायो रे । ते पण धावि तुरत मुंई, सामिण विण न सुहायो रे ॥ १ ॥
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