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चम्पक सेठ चौपई ]
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वृद्धदत्त कहै उद्यम कीजीये, मानै नहीं साधदत्तो जी । समयसुन्दर कहै बिहुँ बांधव तणौ, झगड़ौ लागौ नित्तो जी | १६ | [ सर्व गाथा ६१
ढाल ( ३ ) राजा जौ मिले, एहनी,
साधत्त है सुहौ भाय, कीजै इहां कोड़ि उपाय || १ || भावनां मिटै, एक घड़ी पिण ना घटे । भा०
हुहारी बात ते सहु होइ, कूडौ दुख म करस्यौ कोइ ॥ २॥ भा० एक सांभलि तू इहां दृष्टांत, भाई मत थाजे भय भ्रांत | ३| भा० रतनस्थल छै एहवौ नाम, नगर एक थिर रिद्ध नो ठाम ||४||भा० रतनसेन राजा करै राज, भय कर सह वैरी गया भाज | ५|भा० रतनदत्त छै तेहनो पुत्र, कला बहुत्तर करि सुविचित्र ॥ ६ ॥ भा० राजकुमार अति रूपनिधान, जान प्रवीण थयो पुरुष युवान ||७|| कुमर सरीखी कुमरी अनूप, परणावु इक करीय सरूप |८| भा० चिहुँ दिसि मूक्या चतुर सुजाण, सोलह सोलह पुरुष प्रमाण || जनमपत्री दीधी तीयां साथि, कुमर रूप पट दीधौ हाथि ||१०|| चिहुँ दिशि फिरी आव्या तेह, गया सगला आप आपण गेह ॥ ११ इसी कहै कन्या न मिलै केथि, जोई अम्हे सगलै जेथि तेथि |१२| उत्तर दिसि पणि जे गया सोल, ते पाछा वल्या सगलै ढंढोल १३ गंगातट इक नगरी दीठ, चंद्रस्थल नामै परतीठ ॥ १४ ॥ भा० चंद्रसेन राजा नो नाम, चंद्रवती कन्या अभिराम ।। १५ ।। भा० चौसठ कला सुंदर रूप पात्र, ए आगे अपछर कुण मात्र ॥ १६ ॥ मा बाप नौ जेहवो हुतौ मन्न, ते तेहवा मिल्या रूडा रतन्न |१७|
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