Book Title: Samaysundar Ras Panchak
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 189
________________ ११८] [ समयसुन्दर रासपंचक धरम करउ तुम्हे, विशेष पणइ व्यवहारो रे संयम आदरउ. जिम पामउ भव पारो रे । २।३०। दसे दृष्टान्ते दोहिलो रे, नरभव नउ अवतार । सूत्र सांभलिवउ दोहिलउ रे, सरदहणा सुविचारो रे । ३ । ध० । धरम करतां दोहिलउ रे, भारी करमा जीव । जाणे पिण न सकइ करी रे, रुलस्यइ पाडता रीवोरे। ४ । ध०। कुटुंब सहूको कारिमो रे, जां स्वारथ तां स्वाद । विहडै स्वारथ विण सही रे, पुण्य करउ अप्रमादो रे । ५ । ध० । वृक्ष तणी जिम छांहड़ी रे, खिण खिण फिरती जाय । गरब न कीजइ गरथ नउ रे, घड़ी घड़ थल थायो रे। ६ ।ध ०। भोग भोगवियइ अति घणा रे, तउ ही तृप्ति न थाय । मन वालीजइ आपणौ रे, ए छै एक उपायो रे । ७ । ध० । संयम थी सुख पामीय रे, न पड़ीजै प्रभवास। अजरामर पद पामियै रे, लहीयै लील विलासो रे। ८।३०। सदगुरुनी देसण सुणी रे, प्रतिबूधउ धनदत्त । पोतानी ऋद्धि परिहरी रे, परिहऱ्या पुत्र कलत्रो रे । । । ध० । वयराग मांहे आवी रे, जाण्यौ अथिर संसार । चढ़ते परणामे चढ्यउ रे, लीधउसंजम भारो रे । १०। ध०। धनदत्तसाध भलउ थयउ रे, सफल कीयउ अवतार । समयसुन्दर कहै साधनइ रे,नित माहरउ नमस्कारो रे ।११।१० __ [सर्वगाथा १५२ | Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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