Book Title: Samaysundar Ras Panchak
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 199
________________ १२८] . [ समयसुन्दर रासपंचक सेठ पुरन्दर साथस्युं, आवइ घरि उछरंग हो साथ सुत बोलावइ सकति स्युं, बोलइ वचन सुरंग हो सा० ।।४||सुगा कहीय सहु कुमरी तणी, बात वली ते विशेष हो सा० सांभल पूत सुलक्षणा, तेहगें अधिको तेष हो सा० ॥५॥ ए जुगती जोड़ी नहीं, नेह रहित निटोल हो सा० उचित नहीं अंगज तुनइ, विख्या बोलइ बोल हो सा०॥६॥ यतः कुदेहां विगत स्नेहां गृहिणी परिवर्जयेत् । अण रचता०१ हीयड़ा नुं हेजालुओ०२ इत्याधु क्तम् पुण्यसार पभणइ पछी, हठ करि कीधी होड हो सा० तात तुरत सुणिज्यो तुम्हे, परण्या पूजइ कोड हो सा० ॥७||सुंगा अवसर उपाय न उपजै, कुलदेवति थी काम हो सा० सरिस्यइ एह सही सदा, जागिस्युं हुं बहु जाम हो सा० ॥८॥ आराधइ अति भाव सुं, विधि पूरव वड़ वीर हो सा० आखइ देव प्रतइ इसुं, धरि ते मनि बहु धीर हो सा० ॥६ ॥ दीधो देवि दया करि, पिता प्रतइ सुत सार हो सा० .. करीय कृपा सुकलत्र नी, पूरि मनोरथ पार हो सा० ॥१०॥सु०॥ उठिसि हुँ इतरइ कीयइ, नहीं तर जीमिवा नेम हो सा० जो पूरिसि नहीं जामिनी, काउ कर्यउ मुझ केम हो सा० ॥११॥ कठिन प्रतिज्ञा ते करी, बइठउ देवी बारि हो सामिणि। पांचमी' ढाल पूरी थई, मन सुद्ध रागमल्हार हो सा॥१२||सु० सर्व गाथा ७५], १ समयसुन्दर ढाल पंचमी कीधी राग मल्हार । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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