Book Title: Samaysundar Ras Panchak
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 214
________________ श्री पुण्यसार चरित्र चौपई ] [ १४३ राग मल्हार मइ राखिज्यो; बारमी ढाल विसालोरे 1 हरख करी सुणिज्य हिवइ, आणंद अधिक रसालो रे || १४ || [ सर्व गाथा २१२] ॥ सोरठा ॥ राजादिक कहइ रंगि, किण आणा खंडी कुमर | अनि पइसि करि अङ्ग, कारणि किणि भसमी करइ || १ || कहइ कुमर सुणि राय, कुण आणा खण्डित करइ | इष्ट वियोग अपाय, कारण हू खंडित करू ||२|| नाखी ते नीसास, विरह वचन वदतउ सही । पावक केरइ पासि, आवइ अतिहि ऊतावलो ||३|| कहइ राजा छइ कोइ समझावइ एहनइ सही । लख मिलिया छइ लोइ, वारउ मरण थकी विदुर ||४|| नागरि कहइ नरिंद, पुण्यसार एहनइ प्रगट | कुमर छ सुखकंद, मोटर मित्र महंत मति ॥५॥ [ सर्व गाथा २१७ ] ढाल ( १३ राग जयंतसिरो, दूर दक्षिण कइ देसड़इ, एहनी राजा रलिआइत थई, आपइ तसु आदेस । शुभमति । पुण्यसार जाइ थे पूछउ, क्युं करइ कुमर किलेस शु० || २ || एह अचम्भा अति खरउ, जोवन वेस जोवान |शु० किण कारण काठ आदरइ, सही का ऊपनी सान शु० ||२|| पुण्यसार पूछइ पछइ, नेड़ो जई निसंक । शु० तरुणपण तु काइ तजइ, निपट शरीर निकंप शु० ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224