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श्री पुण्यसार चरित्र चौपई ]
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राग मल्हार मइ राखिज्यो; बारमी ढाल विसालोरे 1 हरख करी सुणिज्य हिवइ, आणंद अधिक रसालो रे || १४ || [ सर्व गाथा २१२]
॥ सोरठा ॥
राजादिक कहइ रंगि, किण आणा खंडी कुमर | अनि पइसि करि अङ्ग, कारणि किणि भसमी करइ || १ || कहइ कुमर सुणि राय, कुण आणा खण्डित करइ | इष्ट वियोग अपाय, कारण हू खंडित करू ||२|| नाखी ते नीसास, विरह वचन वदतउ सही । पावक केरइ पासि, आवइ अतिहि ऊतावलो ||३|| कहइ राजा छइ कोइ समझावइ एहनइ सही । लख मिलिया छइ लोइ, वारउ मरण थकी विदुर ||४|| नागरि कहइ नरिंद, पुण्यसार एहनइ प्रगट | कुमर छ सुखकंद, मोटर मित्र महंत मति ॥५॥ [ सर्व गाथा २१७ ]
ढाल ( १३ राग जयंतसिरो, दूर दक्षिण कइ देसड़इ, एहनी राजा रलिआइत थई, आपइ तसु आदेस । शुभमति । पुण्यसार जाइ थे पूछउ, क्युं करइ कुमर किलेस शु० || २ || एह अचम्भा अति खरउ, जोवन वेस जोवान |शु० किण कारण काठ आदरइ, सही का ऊपनी सान शु० ||२|| पुण्यसार पूछइ पछइ, नेड़ो जई निसंक । शु० तरुणपण तु काइ तजइ, निपट शरीर निकंप शु० ॥३॥
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