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[समयसुन्दर रासपंचक किण दुख मरइ कुमार तूं, वेदन कहि मतिमंत शु० कहइ तेह किणनइ कहुँ, साजन नहीं कोई संत शु० ॥४॥ दुख रह्या मुझ देह मई, ते किणि कह्या न जाइ |शु० कंठ हृदय आवइ कदा, वलि जावइ ते वाय शु०॥॥
यतः जासु कहीयै एक दुख, सोले उठे इकवीस ।
एक दुख विचमें गयो, मिले वीस बगसीस ॥१॥ सुणि कुमार दुखि सारिखउ, अम्ह तुम्ह एह अनन्त । रमणी मुझ पीहर रहइ, वलभीपुरी वसन्त ॥६॥ ए दुख मुझनै अति घणउ, हिव तुरत प्रकासि । [ तेह कहै मुझ प्रिय इहां, गोपाचलपुर वासि ॥७॥ हूं आगत तिण शोधिवा, पणि मुहलत पूरी होइ।] कुमर कहई तेहिज सही, जुगति करी नइ जोइ ॥८॥ तेह कहइ तुझस्युचली, तई तजी तोरण बार। गुणसुन्दरि नामइ गुणी, नारी हूं निरधार ॥६॥ कारण ताहरइ मइ कीयो, पति जी इतो प्रयास । हिव हरषित हुइमुझ दीयो, वेस जुवति बहु वास ॥१०॥ घर थी आणि घडी मांहि, आप्यउ वेस उदार । पहिरी वेस पवित्र ते, निकसी अपछर नार ॥११॥ बहूय वंदइ छइ तुम्हः भणि, पीछइ कहइ पुण्यसार। सुसरादिक सब नइ सही, कुमर कहइ नमोकार ॥१२॥
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