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________________ श्री पुण्यसार चरित्र चौपई ] [१४५ राजा पूछइ रंग सुं, किसउ वृतांत कुमार । शु० । पुण्यसार प्रगटो कियो, अपणो ते अधिकार ।। शु०।१३। ए० । विसमित हूआ वलि सहू, अचरिज एह अनूप । शु०। रतनसार रहिनइ कहइ, भलीय परइ सुणउ भूप। शु० । १४ ।ए। परणी जइ मुझ पुत्रिका, अबला हुइ ते आज । शु० । हिव एहनी गति कुण हस्यइ, सुणि राजन सिरताज । शु०१५।ए० ॥ सोरठा ॥ स्युं पूछइ हो सेठि, राजादिक कहइ रतन नइ । वनिता तेहनी वेठि, परणी तसु पुण्यसार पति ॥१॥ हरखित हुई कुमार, पुण्यसार वल्लभीपुरी। आणावइ अधिकार, सुन्दरि छए सामठी ॥२॥ आठे नारि उदार, आवी ते घर अंगणइ । आठे महल अपार, सूंप्या सेठ पुरंदरइ ॥३॥ सुख भोगवइ सुजाण, पुण्य जोग पुण्यसार ते। कोई न लोपइ कार, कुलनीतइ चालइ कुमर ॥४॥ इण अवसर गणधार, ज्ञानसागर गुरु आवीया। न्यानी निरतीचार, चारित पालइ चित्त सं ॥५॥ वाचइ बहु विस्तार, सेठ पुरंदर सरस मति । सुणइ देसणा सार, पुण्यसार सुं परिवर्यउ ॥६॥ ढाल (१४) राग-गउड़ी, चाल-प्रतिबूधउ रे, ज्ञानसार गुरु उपदिसइ सुणिसंतो रे, ए संसार असार सहु सुणो संतो रे। अथिर रिद्धि ए आउखउ सु० विणसत न लागइ वार स० ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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