________________
१४२]
[समयसुन्दर रासपंचक पुण्यसार पाछइ सुन्यो, परणी परतिख तेहो रे । कुलदेवति नइ इम कही, दीकरा अब कांइ मरइ तूं आलो रे॥३॥ कहइ कुमर कुलदेवि नइ, महिला मांगी मई मातो रे । परणी ते परदेसीयइ, तिण करुं आतमघातो रे ॥४॥ अ०॥ कहइ देवति सुण कुमर तु, मइ दीधी मतिमंतो रे। ते होस्यइ वछ ताहरी, नारी निपट नितंतो रे ॥५॥ कहइ कुमार कृपापरू, पर रमणी नवि पेखू रे। . ए परणी हिवणा अछइ, किसु करू किसु लेखुरे ॥६॥ कहइ कुलदेवी किसु करूं, बार बार वछ आल रे। ते तरुणी होस्यइ तिहारे, ते सुणज्यो ततकाल रे ॥॥ तेह वचन मान्यउ तिणइ, देवी तणा दयालो रे । तिण अवसर होस्यइ तिहां, ते सुणज्यो ततकालो रे ॥८॥ गुणसुन्दर गुणसुन्दरी, चिंतहि मनहि मझारो रे । अवधि अम्हारी अब थइ, नाह न मिल्यउ निरधारो रे ॥६॥ कठिन प्रतिज्ञा ते करी, चाली हुं चउसालो रे। पावक पइसिस हुं हिवइ, झलझलती बहु झालो रे ॥१०॥ इम चिंतवि ते वनि आवइ, काठ करइ इकठाई रे। लोक मिल्या लख इम कहै, कुमर मरइ तु कांइ रे ॥११॥ सकल नगर मांहे ते सुणी, बात बडी बहु एहो रे। सारथपति मरइ ए सही, निरति नहीं किण नेहो रे ॥१२॥ भूप प्रमुख आया मिली, कहइ कुमार नइ एमो रे । काठभखण करइ काइ तूं, कहइ वृतांत छइ केमो रे ॥१३॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org