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श्री पुण्यसार चौपई ]
॥ सोरठा ॥
गुणसुंदर गुणधार, सुणि तु एक वचन सही । सुता अम्हारी सार, तुझ परणण वांछइ पवर ||१|| चिति चितवइ कुमार, अहो कतूहल ए अधिक । भामिनी नइ भरतार, महिला जुगल तणउ मिलइ ||२|| वनिता वंछइ एह, परणेवा मुझ नइ प्रगट | रहस्यै नहि ए रेह, संबंध एह नहिं सारिखउ ||३|| कहुं हिव ऊतर कोई, वारू इणि कारण वली । दुख होस्यइ हम दोई, नवि मिलस्यइ जो नाहलो || ४ || कहइ विचार कुमार, सुणिज्यो सेठ सहू सहू । ए मोटा अधिकार, पिता न जाणइ पवर ||५|| ॥ दूहा ॥ हिवणा ते दूरइ हुआ, तिण कारण तू तेड़ि । कोई कुमार कलानिलउ, निज पुत्री द्यइ नेड़ि ||६|| रतनसार कहि राग धरि, सुणि हो कुमर सुजान । मुझ पुत्री मनि तूं वस्यउ, अब कहउ क्युं घरं आनि ||७|| [ सर्व गाथा १६७ ]
[ १४१.
ढाल ( १२ ) राग मल्हार, नारी अब हम मोकली, एहनी, कुमरइ मान्यो कथन ते, अति आग्रह सु अपारो रे । उच्छव करि घर आणियो, परणाई सुता सारो रे ॥१॥ अचरिज एहवउ अब सुणड, परणइ प्रमदा प्रेमो रे । सुणतां आनंद संपजइ, न मिटइ विधि लिख्यो नेमो रे ॥२॥
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