Book Title: Samaysundar Ras Panchak
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
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१२६ ]
[समयसुन्दर रासपचक
तउ तूं सुणि हो तात, जउ मुझ वंछइ जीवतउ । रतनसार नी राति, पुत्री परणावउ प्रगट ।। ४ ।।
[ सर्व गाथा ५०] ढाल (8) राग मारू, चाल-वालुं रे सवायो वयर हुं माहरो । सुत नइ तात कहइ सुणिजे सही रे, अजी तुं बाल अयाण । तरुण पणइ परणावेस्युं तनइ रे, सुंदर सहज सुजाण ॥ १॥ बोलइ तात सुणउ मुझ वीनती रे, अधिक विद्या रे अभ्यास | करि हो कुमर कुतूहल परिहरी रे, अम्ह मनि बहुत' उल्हास ।२। कुमर कहइ करिस्युं तुम्हारो काउ रे, तरुणी मागउ तेह । तउ हुं जीमुं तात सुणो तुम्हे रे, दुख भरि दाझइ देह ॥३॥बो॥ सुत समझावी सेठ तिहां सही रे, जीमाड्यो जीव प्राण । मांगण चाल्यउ मारगि मल्हपतउरे, साथ ले सयण सुजाण ॥४॥ रतनसार पूछइ मनि राग सुं रे, किम आव्या किण काज । भाषउ हित करि भाव धरीभलउजी, आपण आव्या आज ॥३॥ रतनवती हिव आपउ रावली जी, बेटी बहु बुद्धिवंत। रतनसार रलीयायत थई कहइ रे, गरूआ थे गुणवंत ।।६।बो मानीता थे नगर महीपतइ जी, आपण मांगी रे आइ। मइ बेटी दीधी हिव माहरी जी, कालखि नाही काइ ॥णाबो। बेटी वचन सुणी ते बाप नुं रे, पिता नइ ऊभी रे पासि । तात भ्रात सुणिज्यो सहु को तुम्हे जी, बोलइ वंचन विलास ॥८॥
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