Book Title: Samaysundar Ras Panchak
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 209
________________ १३८] . [ समयसुन्दर रासपंचक प्रीय आवो रे पाछा पुण्यवंत, वलि वलि विलवइ नारी रे। साते सुन्दरि साहिब तइ सब, निपट छोड़ी निरधारी रे ॥२॥ किण अवगुण छोडी तई कंता, अम्हनइ अवगुण आखउजी। दया करी द्यउ दरसण कृपा पर, रोस रती नवि राखउजी ॥३॥ घड़ी दुहेली तुम्ह विण घर में, विरह वियापइ देहजी। पूरी प्रीत न पाली प्रीतम, छयल न दाखउ छह जी ॥४॥ चंदो चंदन नइ चित्रसाली, चरणउ चूनडि सार जी । चूडउ चीर अनइ चतुराई, अम्ह तनि लागइ अंगार जी ॥५॥ साहिब सार करउ अबलानी, अम्ह हिव कुण आधार जी। भरण पूरण भरतार करइ सब, अस्त्री नइ आथि भरतार जी ॥६॥ देवइ दुख सबल ए दीधउ, पतिविण न रहइ प्राण जी। किउं करि छोड़ि गयो अम्ह कंता, जुगति तणउ तूं जाण जी ॥७॥ करि बहु रुदन सप्तइ कुमरी, अबला पड़इ अचेत जी। सीतल पवन सचेत करी सब, नीर वहइ बहु नेत जी ॥८॥ पुत्री तणउ विलाप सुणी पितु,आयो तिण आवासि जी। रंग तणी वेला स्युरोदन, पति किउ नहीं तुम्ह पासि जी ॥६॥ एह वृतान्त कहो मुझ अब, कहइ सुता कथा तेह जी। परदेशी परणी ते पापी, नासि गयो मत तेह जी ॥१०॥ पकड़ी थे नवि राख्यउ किउं पति, नासतो निरभीक जी। किसी कहुं हिव बात कुमरनी, ठउड़ कही नवि ठीक जी ॥११ रूप रंग रामा नो देखी, सब भूलइ संसार जी। तुम्ह रूपे नवि भूलो ततखिण, विरूउ तुम्हाविकार जी ॥१२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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