Book Title: Samaysundar Ras Panchak
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 195
________________ १२४ ] [ समय सुन्दर रासपंचक अनुक्रमि पुत्र उदार, जनम्य उच्छब कीया अपार, सेठ पुरंदर सरल मति ॥ ३ ॥ जननी 'जुगति सुं । पुण्य करी परधान, आयउ पुण्य पायउ पुण्य प्रमाण, प्रगट नाम दूहा घरइ अधिक । पुण्यसार इति ॥ ४ ॥ तणइ परमाण पंच धाय पालीजतउ, पुण्य मात पिता वल्लभ महा, सुंदर सहज सुजाण ॥ ५ ॥ [ सर्व गाथा ३५ ] ढाल (३) राग - आसा, राजा नी कुमरी ए चाल । आठ वरस नुं अनुक्रमइ रे, पुत्र हूओ परधान । मात पिता मन रंग सुं, मुंक्यउ पढिवा बहुमान रे ॥ १ ॥ सुंदर सोभागी । वाइ रे विधि स्युं वड़भागी, साल भइ रे | सुं तिणि नगरी निवसइ तिहां रे, रतनसार रिद्धिवंत । सुता तेहनी सुन्दरी रे, रत्नवती रूपवंत रे ॥ २ ॥ सुं० ॥ ते पण भणइ सदा तिहां रे, बुद्धिवती बलवंत | पढतां ते पुण्यसार सुं रे, होड करइ हठवंत रे ॥ ३ ॥ सुं०॥ अन्य दिवस अलगी करी रे, पभणी ते पुण्यसार । हे सुंदरि सुणिजे सही, तुं वारू एक विचार रे ॥ ४ ॥ सुं -नरनी होड न कीजीयइ रे, नर निंदियइ न कोइ । नारि होइसि नर तणी हे, जुगति करी नइ जोइ रे ||५|| सुं० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224