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[ समयसुन्दर रासपंचक वंचना रहित ते पांचमउ, अक्रूर नाम कहाय । पाप थकी डरतउ रहइ, छट्ठउ आवइ दाय ।। ६ ।। माया न करइं सातमउ, आठमउ करिइ उपगार। नवमउ वाले कुकरमथी, दसमउ दया अपार ।। १० ॥ रागन रोस इग्यारमउ, मध्यस्थ रहै महांत । बहु गुण वालबारमउ. दरसण पणि सांत दांत ॥ ११ ॥ गुण रागी गुण तेरमउ, संत कथ चउदस मुद्र । सोभन पक्ष तेहीज कहयौ, कुलनइ वंस विसुद्ध ॥ १२ ॥ दीरघ दरसी पनरमउ, सोलम लहें विशेष । वृद्ध बुद्ध वामहं वहै, सतरम गुण छ एष ।। १३ ।। विनइ करइ ते अठारमउ, मा बाप गुरू नो जेह । उपगार जाणे इण कीयउं, गुणीसमउं गुण एह ।। १४ ।। परहितकारी बीसमउ, अंगित नै आकार । लब्ध लक्ष इकवीसमउ, ए एकवीस गुणसार ।। १५ ।।
ढाल-(१) चउपई नी. एकवीस माहे व्यवहार वड़उ, पुण्य क्रतूत मांहे परगड़उ । व्यवहार पाखई सगलउं फोक, बाल गोपाल कहै सहुलोक ॥१॥ पहिरण विण माथै पागड़ी, इंढोणी विण माथै घड़ी। राग विना अम्मारति किसी, जाते द्याहड़े जायै खिसी ॥२॥ चेलाली माथइ बेहड़, निरगुण नाह किसउ नेहड़उ । गाम नहीं तउ किहां थी सीम, ठांढ़ि नहीं तउ किहां थी हीम ॥३॥ व्यवहार सुद्ध विना नहिं सोभ, भाग माणस किहां लहै थोभ ।
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