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[समयसुन्दर रासपंचक श्री खरतरगच्छ राजीयौ, श्री युगप्रधान जिनचंदो रे। प्रथम शिष्य श्रीपूज ना, श्री सकलचंद मुर्णिदो रे ॥ १६ ॥ के० समयसुन्दर शिष्य तेहना, तिण चौपई कीधी एहो रे। शिष्य तणे आग्रह करी, जे ऊपर अधिक सनेहो रे ॥ १७ ॥ के० नर नारी रसिया हुस्य, ते सांभलस्यै सदा आवी रे। सुघड़ सुकंठी बे जणा, वाचज्यो भली बात वणावी रे ॥१८॥के० इति द्वितीय खण्डोपि अनुकम्पा विषये समाप्तः सर्व गाथा १६२, प्रथम खण्डे गाथा ३४४, द्वितीय खंडे १६२ द्वयोमीलने ५०६ ग्रन्थाग्रन्थ श्लोक ७०० संख्या इति चंपकसेठ चौपई संपूर्णाः । संवत १७९४ वैशाख सुदी १३
श्री फलवद्धीपुरे। प्रति नं० ४२६६ ( बं० ८९) श्री अभय जैन ग्रन्थालय,
पत्र १० प्रति पत्रे पंक्ति १७ प्रति पंक्ति अक्षर ६०
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