Book Title: Samaysundar Ras Panchak
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 176
________________ धनदत्त श्रेष्ठि चौपई ] [ १०५ सील विना सोभा किहां थकी, दामि विना धूम न करइ सकी॥४॥ वइंरि नहीं तउ बेटउ किहां, धरम विना सुख नहीं जिहां । गरथ बिना किम मांडै हाट, गुरु विण कुण देखाड़े वाट ॥५॥ व्यवहार सुद्धि आंकां जिम भली, बीजा गुण मींडी एकली। व्यवहार सुद्धि तउ सहु गुण भला, व्यवहार विण सगला निःफला।६ दान तणा दीसै दातार, सील वरत पण ल्यई सुविचार । तपसी पिण दीसै छै कोय, विण व्यवहार केथे किण होय ॥७॥ साधनइ बोल सुद्ध आहार, श्रावक नई बोलउ व्यवहार । ए बेऊ करता दीसे भला, परभव पिण थायइ सोहिलां ।। ८ ॥ व्यवहार शुद्ध पण दोहिलउं, सूर वीर तेहनई सोहिलउं । पहिली ढाल कही मइ लह, समयसुंदर कहै बात छइ बहू ।।६।। [सर्व गाथा २४] ढाल ( २ ) तिमरी पासे वडलं गांम, एहनी जंबुदीप भरतक्षेत्र सार, नगरी अयोध्या नाम उदार । राज करइ तिहां उग्रसेनराय, दोस नगरहि न्याय कहाय ।। १।। पदमावती नामइ पटरानी, भरतार भगत दातार वखाणी । सुबुद्धि नामइ मुहतउ मतिमत, सामि भगत राज-काज करंत ।२। धनदेव नपुत्र धनदत्त नाम, व्यवहारीयउ वसै तिण हीज ठाम बाल पणइ मूया माय नइ बाप, प्रगट थयउ पूरवलउंपाप ॥३।। बाप तणउ द्रव्य बइठउं खाय, अकज अधम नउँ सहज कहाय । आठ वरस नउं थय धनदत्त, शास्त्र भणई न्याय नीति ननित्त ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224