Book Title: Samaysundar Ras Panchak
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 185
________________ ९१४] [समयसुन्दर रासपंचक बाप नै बेटा मिल्या सहु, बलि मिल्या स्त्री भरतार रे। जेहनई पुण्य पोतइ हुतउ, तेहनइ तूठउ करतार रे।४ाना। तिण समइ मित्र उतावला, वंदडि आबि नइ दीध रे। कुसल छइ एह संभारणी, विगति सुबात न कीध रेशना। प्रीति पामी लेइ करंडीयउ, उरड़ा मांहि उखेलि रे। माल मलूक देखी करी, दुख करइ अवहेलि रे ।६।ना०॥ मसकति नउ माल ए नहीं, ए परवंचना माल रे। सही व्यवहार सुद्ध भांजीयउ, ए परहउ धूड़ि मइ घाल रे ।ना० घरत भांजी वित्त पामीय, ते विष सरिखउ होय रे। दुख संसार मांहि देखीय, एस्युमाहरइ नहीं काम कोयरे ॥८॥ मित्र आव्यउ मिलवा भणी, दिलगीर दीठी भउजाय रे । आवडं दुख तु का करइ, कंतनइ कुशल कहाय रेहाना मन तणी बात नारी कही, मित्र काउ सरब सरूप रे । पुण्य फल्यउ तुझ प्रियु तणउ रे, एह कमाल अनूप रे ।१०ाना। परम खुसी थई पद्मिनी, धरमनी आसता आणि रे। सील पालइ रे सुलक्षणी, जिन ध्रम नउ फल जाण रे ।११।ना। धनदत्त साहना मित्र नै, साबासि देज्यो सहु कोय रे । लोभ लिगार कीधउ नहीं; एहवा जग में एक दोय रे ।१२।ना०। । धरम थकी धन संपजइ, धरम, थकी सुख होय रे । समयसुन्दर साचुं कहै, धरम करउ सहु कोय रे ।१३।ना० GT .. ... [सर्वगाथा ११२] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224