Book Title: Samaysundar Ras Panchak
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 184
________________ धनदत्त श्रेष्ठि चौपई] । ११३ राजा ढंढेरउ फेरनइ, कहइ जउ को बीजोरउ देय । तउ हूँ आपु तेहनइ, आपणइ मुंहडइ जे कहेय रे दावी। नगर मांहि पाम्यउ नहीं, साथ मांहि पड़हउ संभलाव्यउ ।। . पर दीप थी आविया, कदाचि कोयक ते ल्याव्यउ रे ॥णाबी० धनदत्त नइ मित्र सांभली, ढंढेरउ छब्यउ निज हाथि रे । बीजोरउ ले गयउ, राजा ना पुरषां साथि रे ।८बी। कुमर नइ ते व्यवरावियउ, अति शीतल नइ सुसवाद रे। दाध ज्वर ऊतस्यउ ओ, ऊपनउराजा नइं आल्हाद रे हाबी०| करंडीयउं ले काठउ भस्यउ, मणि माणक कनक उदार रे । मान्यउं घणउं मित्र नइ, कह्यौ तई कीधउ उपगार रे ।१०बी०। साथ नै दाण मुकी दीयउ, साचउ ध्रम नउ संबंध रे। सुखीयउ मूणइ साथ नै, न कीजइ तेहनउ प्रतिबंध रे ।११०बी०। ते साथ तिहां थी चालीयउ, आयउ वही आपणइ गामि रे। समयसुदर इम कहइ, पुण्य थी सीझे सहु काम रे ॥१२॥बी०। . [सर्व गाथा RE] ढाल (६) राग-गौड़ी, मनडु रे ऊमााउमिलवा पुत्र नई एहनी साथ सहू घर आवियउ जी, कुसले खेमे संघाति रे। धनदत्त एक न आवियउ जी, भारिजा नै थइ भ्रांति रे।। नाहलियउ नाव्यउ रे नारी दुख करइ, नयणड़े नीर वहंत रे। अबला जोवइ रे ऊभी बारणे, पिउ तणी बात पूछंत रे ।राना सेठ वाणउन सहु आविया, आव्या व्यापारी लोक रे। आंडोसी पाडोसी सहु आविया, कंत बिना सहु फोक रे ना० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224