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[समयसुन्दर रासपंचक साथ सहू को चालियउ जी, ते पिण चाल्यउ मित्र । धनदत्त ते तउ तिहां रह्यउ जी, करम नी वात विचित्र रे ।२४।दो। ढाल ए चउथी भणी जी, व्यवहार सुद्ध नी बात। . समयसुदर कहै सांभलउ जी, एह सखर अवदात ।२।दो।
सर्व गा० ८५]
प्रवहण तिहां थी चालियउ, सहु को चाल्यउ साथ । धनदत्त साह तिहां राउ, आथि न आबी हाथ ॥१॥ प्रवहण कुसले आवियउ, किणही गाम निजीक । साथ सहू को ऊतस्यउ, नर तिहां रहै निरभीक ॥२॥
[सर्व गाथा ८५] ढाल (५) जाति परिआनी तिण अवसरि तिण नगर मइ, बाजइ ढंढेरा ढोल रे । राजा ना आदमी, बोलइ वलि एहवा बोल रे ।१। बीजोरउ केहनइ हुय, तउ देज्यो नर नारि रे। पर दीप नउ ऊपनउ, अति शीतल सुखकारि रे ।।बी० । राजा तणउ पुत्र रोगीयउ, ऊपनउ दाघ ज्वर डील रे। राजवैद्य बोलाविया, करउ औषध म करउ ढील रे ।३।बी। दाय उपाय किया घणा, पणि शरीर समाधि न थाय रे । वेदना सबली थई, जीवत हाथ मांहि जाव रे ।४।बी। वैद्य ऊच्या हाथ झाटकी, कहइ मरतउ न राखइ कोय रे । पणि एक उपाय छइ, परदेसी बीजोरउ होय रे ।।बी०।
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