Book Title: Samaysundar Ras Panchak
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 181
________________ ११०] [समयसुन्दर रासपंचक सेठ कहै गोवालियो जी, तेड़ी नइ वारैसि रे ॥७॥ दोल॥ पण मन स्यउं वारइ नहीं जी, स्वारथ वाल्हउ होय।। दूध दही घी हुवइ घणा जी, कुटुंब जाणइ सहु कोय रे ॥८॥ दो। धनदत्त चित्त विमासियउ जी, नहीं इहां व्यवहार शुद्ध। सेठ छोडी नइ सांचरयउ जी, इहां तउ धरम अशुद्ध रे ॥६॥ दो० बलि बीजै गामि मइं गयो जी, श्राविका सांभली तेथि । तेहनइ वाणउत्त जई रह्यउ जी, धन नहीं जाउं केथि रे॥१०॥ तेहनइ माल घणउ घरे जी, करइ वलि वणिज व्यापार । घर नउ लेखउ तेहनइ जी, सूप्यउ तू करे सार रे॥१॥ दो०॥ ते बाई अति लोभणी जी, वलि नहिं पुत्री पुत्र ।। रासिं कातिं अरहटीयै जी, पा सेर अधपाव सूत्र रे॥१२॥ दो०। पडोसी नी मैडीयै जी, दीवउ रहइ निस सेज। जारी चांदरणउ पड़इ जी, ते कातै तिण तेज रे ॥१३॥ दो० । धनदत्त कहै हुं नहीं रहुँ जी, ताहरइ नही ब्यवहार। दूध में पुरा तूं जोवइ जी, कहै बाई वार-वार रे ॥४॥ दो। कात्या नु जे ऊपजइ जी, तेहनु सालणुं थाय । सहु को जीमै ते सदा जी, खांति सुसहु को खाय ॥१॥ दो। महीनौ लेइ नै नीसरर्यउ जी, जइ मिल्यउ मूलगै साथि । विणज व्यापार सहु करइ जी, धन नहीं धनदत्त हाथि ॥१६॥ दिन केतला एक तिहां रह्या जी, वस्तु वाना वेचि साटि। साथ सहू परवारियउजी, वखत सारू धन खाटि रे ॥१७॥ दो०। मित्र कह्य धनदत्त नइ जी, चालि तु आपणइ देसि । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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