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[समयसुन्दर रासपंचक बाप नै बेटा मिल्या सहु, बलि मिल्या स्त्री भरतार रे। जेहनई पुण्य पोतइ हुतउ, तेहनइ तूठउ करतार रे।४ाना। तिण समइ मित्र उतावला, वंदडि आबि नइ दीध रे। कुसल छइ एह संभारणी, विगति सुबात न कीध रेशना। प्रीति पामी लेइ करंडीयउ, उरड़ा मांहि उखेलि रे। माल मलूक देखी करी, दुख करइ अवहेलि रे ।६।ना०॥ मसकति नउ माल ए नहीं, ए परवंचना माल रे। सही व्यवहार सुद्ध भांजीयउ, ए परहउ धूड़ि मइ घाल रे ।ना० घरत भांजी वित्त पामीय, ते विष सरिखउ होय रे। दुख संसार मांहि देखीय, एस्युमाहरइ नहीं काम कोयरे ॥८॥ मित्र आव्यउ मिलवा भणी, दिलगीर दीठी भउजाय रे । आवडं दुख तु का करइ, कंतनइ कुशल कहाय रेहाना मन तणी बात नारी कही, मित्र काउ सरब सरूप रे । पुण्य फल्यउ तुझ प्रियु तणउ रे, एह कमाल अनूप रे ।१०ाना। परम खुसी थई पद्मिनी, धरमनी आसता आणि रे। सील पालइ रे सुलक्षणी, जिन ध्रम नउ फल जाण रे ।११।ना। धनदत्त साहना मित्र नै, साबासि देज्यो सहु कोय रे । लोभ लिगार कीधउ नहीं; एहवा जग में एक दोय रे ।१२।ना०। । धरम थकी धन संपजइ, धरम, थकी सुख होय रे ।
समयसुन्दर साचुं कहै, धरम करउ सहु कोय रे ।१३।ना० GT ..
... [सर्वगाथा ११२]
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