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________________ धनदत्त श्रेष्ठि चौपई ] [११५ ढाल (७) हिव राणी पदमावती एहनी भेटि लेई गई भारिजा, राजा नै पासो । धरती घउ नगरी धणी, मांडू आवासो ।। धरम फल्यउ धनदत्तनउ, सह कोई करै वातो। पुण्य करउ रे प्राणियां, दिन नइ बलि रातो राधा राजा कहइ जेती जोईयइं, तेतली ल्यउ धरती । मोटा महुल मंडावीया, अंगि आणंद करती ।३।१०। गउख कराव्या गोरड़ी, आलीआ ने जाली। हीडोला खाट हीचिवा, वली बंध्या विचाली ।४।। बाग वाड़ी फल फूल नी, खंडोखलि मांहे। बारणइ तोरण बांधीया, ऊंचा कलश उच्छाहे ॥ध०। सील पालती श्राविका, रहइ महल मझारो। सत्तूकार मंडाविया, दान द्यइ दातारोध० साध अनइ वलि साधवी, पात्रां भरि पोषइ । भगतियुगति करी अति भली, साहमी नइ संतोषइ ध० दोहिला दुखिया दूबला, तेहनी करइ सारो। धन धन लोक सहु को कहइ, तूठ उ करतारो।८ ध। धनदत्त नी 'कहै भारिजा, प्रिउ नउ परसादो। . . प्रियु ना व्यवहार शुद्ध नउ, करू हुँ का प्रमादो।।।। सुस ए व्यवहार सुद्ध नउ, साह नउ फल्यउ एहो। समयसुन्दर सहु करउ, पिण नहीं पलइ तेहो ।१०।१०। [सर्वगाथा १२२] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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