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॥ दूहा ॥
घउ काल धनदत्त तिहां, राउ परदेस मकार | मसकति पण कीधी घणी, पणि पलवइ व्यवहार | P धन कांइ पाम्य नहीं, वली विमास्यउ एम । धरती थी लहणउ नहीं, कहउ हिव कीजै केम २ जइयइ मरतां जीवतां, जनमभूमि किमहीक । तउ साता सुख पामियइ, इम करिवउ तहतीक 1३/ धनदत्त मनि धीरज धरी, एकलड चाल्यउ एह I कुसले खेमे आवीयउ, गेहनी वालइ गेह |४| फाटे तू लुगड़े, मोष्टी दाढ़ी मूंछ | खासड़े त्रूटे खेह भस्यड, भूख्यउ तरस्यउ भुंछ ॥५॥
मोटा महुल ए केहना, पूछ्याउ ते कहै एम । धनदत्त साह तणी प्रिया, प्रगट कराव्या प्रेम |६| धनदत्त नई धोखउ थयउ, पिण जाऊ घर मांहि । पइसतां बारणइ पोलिया, राख्यउ झालि बांहि || परदेसी तु कुण छइ, पोलिए पूछ्यउ एम । सेठाणी स्युं काम छई, जावा द्यउ जिम तेम १८| हुकम विना को हद्द छ, पइसइ महल मकारि । माल मलूक मागू नही देखण घर दीदार || हटक्यउ पिण हठ ले राउ, स्त्रीनइ काउ सरूप | ते कहइ आणि ऊभउ करउ, जिहां तड़ तड़तड धूप | १०/
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[ समयसुन्दर रासपंचक
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