SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११६ ] ॥ दूहा ॥ घउ काल धनदत्त तिहां, राउ परदेस मकार | मसकति पण कीधी घणी, पणि पलवइ व्यवहार | P धन कांइ पाम्य नहीं, वली विमास्यउ एम । धरती थी लहणउ नहीं, कहउ हिव कीजै केम २ जइयइ मरतां जीवतां, जनमभूमि किमहीक । तउ साता सुख पामियइ, इम करिवउ तहतीक 1३/ धनदत्त मनि धीरज धरी, एकलड चाल्यउ एह I कुसले खेमे आवीयउ, गेहनी वालइ गेह |४| फाटे तू लुगड़े, मोष्टी दाढ़ी मूंछ | खासड़े त्रूटे खेह भस्यड, भूख्यउ तरस्यउ भुंछ ॥५॥ मोटा महुल ए केहना, पूछ्याउ ते कहै एम । धनदत्त साह तणी प्रिया, प्रगट कराव्या प्रेम |६| धनदत्त नई धोखउ थयउ, पिण जाऊ घर मांहि । पइसतां बारणइ पोलिया, राख्यउ झालि बांहि || परदेसी तु कुण छइ, पोलिए पूछ्यउ एम । सेठाणी स्युं काम छई, जावा द्यउ जिम तेम १८| हुकम विना को हद्द छ, पइसइ महल मकारि । माल मलूक मागू नही देखण घर दीदार || हटक्यउ पिण हठ ले राउ, स्त्रीनइ काउ सरूप | ते कहइ आणि ऊभउ करउ, जिहां तड़ तड़तड धूप | १०/ 2 [ समयसुन्दर रासपंचक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy