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[समयसुन्दर रासत्रय
कुअरी कुमर मिली नाम राश, पट दीठां लह्यो रूप प्रकाश ॥१८॥ वारू दिन मेल्यो वीवाह, लीधौ लगन सोलां दिन मांहि ॥१६॥ वर वेगलो दिन थोड़ो विचाल, जीव पड्यौ सहुनो जंजाल ॥२०॥ मुंहतो कहै तूंमे मांडो पलाण, घडिया जोयण ऊंट बंधाण ॥२१॥ सात दिवस जातां ना तेथि, सात दिवस आववा ना एथि ।२२। सात दिवस पहुँता तिण ठांम, जिहां वर राजा छै अभिराम ।२३ म करौ ढील कहै भूपाल, पागड़ा पग दीधौ ततकाल ।२४। भा० तिण अवसर तिहां थयौ विरतंत, समयसंदर कहैते सुणोतंत ॥२५॥
[सर्वगाथा ८६ ]
दूहा समुद्र मांहे छै सांभलौ, पर्वत एक प्रचंड । तेहनो नाम चित्रकूट छ, तेहवौ नहि निहुँ खंड ॥१॥ ते ऊपर लंकापुरी, थिर राक्षस नो ठाम । सखरो गढ सोना तणो, भला भुरज अभिराम ||२|| गढ मढ मंदिर मालीया, ऊंचा घणू आवास । रिद्धि समृद्धि भरी पुरी, स्वर्गपुरी संकास ।।३।। दीस दारियौ चिहुं दिस, तेहिज खाई तेथि । अगम अगोचर आवतां, जावंतां पणि जेथि ।। ४ ।।
ढाल (४)-मारग में आंबौ मिल्यौ, ए देशी, राज करै तिहां राजीयौ, राणौ रावण दूठौ रे । इन्द्रजित मेघनाद एहवा, पुत्र पूरै जसु पूठौ रे ॥१।। रा०
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