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चम्पक सेठ चौपई ]
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पांच सहस बीजा सुभट, पांचसै ऊंट प्रधान रे । दस हजार पणि पोठीया, लाख बलद नो गामन रे ||५|| पु० सौ गोअल दस दस सहस, गोअल गोअल गाइन रे । व्यापारी सेवा करें, दस हजार घर आइन रे || ६ || पु० लाख द्रव्य लागै जिणे, एहवौ अंगनौ भोगन रे । मन वंछित सुख भोगवे, पूरव पुण्य संयोगन रे ॥ ७ ॥ पु० दीन हीन देखी करी, द्यई ते करुणा दानन रे ।
राति दिवस दस लाखनु, बांधु पुण्य
बंधाणन रे ॥ ८ ॥ पु०
शुद्धन रे
साधु समीपे भ्रम सुणी, थयौ ते पालै जीवदया प्रगट, नहीं व्यापार
श्रावक
विरुद्धन
देव जुहारें दिन प्रतै, ऊठी विहरा कर वंदना, पातरा भर भर
ऊगतै
रूड़ी
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रे ॥ ६ ॥ पु
सूरन रे
पूरन रे ॥ १० ॥ पु० रीतन रे ।
प्रीतन रे ॥ ११ ॥ पु०
पडकमणू बे टंक नूं, साचवै सामी ने माने घणू, परमेसर सु सखरा सहस करावीया, जैन तथा प्रासादन रे । दंड कलश ध्वज दीपता, वांद्यां विटले विषादन रे || १२ || पु फटक प्रवाल पाषाणना, कनक रूपाना बिंबन रे । लाखे गाने भराविया, वित्त नौ नहीं विलंबन रे ॥ १३ ॥ पु० संसारना सुख भोगवै, करै धरम करतूतन रे समयसुन्दर सफलो करें, ए करणी अदभूतन रे ॥ १४ ॥ पु० [ सर्व गाथा १८]
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