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________________ चम्पक सेठ चौपई ] [ ८७ पांच सहस बीजा सुभट, पांचसै ऊंट प्रधान रे । दस हजार पणि पोठीया, लाख बलद नो गामन रे ||५|| पु० सौ गोअल दस दस सहस, गोअल गोअल गाइन रे । व्यापारी सेवा करें, दस हजार घर आइन रे || ६ || पु० लाख द्रव्य लागै जिणे, एहवौ अंगनौ भोगन रे । मन वंछित सुख भोगवे, पूरव पुण्य संयोगन रे ॥ ७ ॥ पु० दीन हीन देखी करी, द्यई ते करुणा दानन रे । राति दिवस दस लाखनु, बांधु पुण्य बंधाणन रे ॥ ८ ॥ पु० शुद्धन रे साधु समीपे भ्रम सुणी, थयौ ते पालै जीवदया प्रगट, नहीं व्यापार श्रावक विरुद्धन देव जुहारें दिन प्रतै, ऊठी विहरा कर वंदना, पातरा भर भर ऊगतै रूड़ी Jain Educationa International 1 रे ॥ ६ ॥ पु सूरन रे पूरन रे ॥ १० ॥ पु० रीतन रे । प्रीतन रे ॥ ११ ॥ पु० पडकमणू बे टंक नूं, साचवै सामी ने माने घणू, परमेसर सु सखरा सहस करावीया, जैन तथा प्रासादन रे । दंड कलश ध्वज दीपता, वांद्यां विटले विषादन रे || १२ || पु फटक प्रवाल पाषाणना, कनक रूपाना बिंबन रे । लाखे गाने भराविया, वित्त नौ नहीं विलंबन रे ॥ १३ ॥ पु० संसारना सुख भोगवै, करै धरम करतूतन रे समयसुन्दर सफलो करें, ए करणी अदभूतन रे ॥ १४ ॥ पु० [ सर्व गाथा १८] For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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