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द्वितीय खण्ड
बीजउ खंड हिव बोलस्यु, चंपक पामी रिद्धि । ए अनुकंपा दान थी, सगली जाणो सिद्धि ॥१॥ छिन्नू कोड़ि तणौ धणी, थयौ ते चंपक सेठ । वृद्धदत्त व्यवहारीय, तिण तौ कीधी वेठ ॥२॥ चौद कोड़ि सोना तणी, आपणा माता वृद्धि । उज्जेणी थी आण नें, सगली भेली किद्ध ॥३॥ चंपक सेठ चंपापुरी, भोगवै लील विलास । व्यापारै वाध्यो घणु, प्रगट्यौ पुण्य प्रकाश ॥४॥
ढाल (८)-कर जोड़ी आगलि रही, पहनी छिन्नू कोड़ि निधान गत, वलि छिन्नू व्यापारन रे। छिन्नू वलि व्याजे फिरै, ऐ ऐ पुण्य प्रकारन रे ॥१॥ पुण्य तणा फल भोगवे, चंपक सेठ सुजाणन रे। अचरिज सुणतां ऊपजे, पूरब पुण्य प्रमाणन रे ॥ २॥ पु० सहस वाहण वहै सासता, सहस वहै सकट नित्यन रे। सहस गेह सातभूमिया, सहस हाट पणि सत्यन रे ॥३॥ पु० भांडशाला इक सहस ते, पांचसै गज परवारन रे। पांचसे सुभट पासे रहै, हय पण पांच हजारन रे ॥ ४॥ पु०
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