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चम्पक सेठ चौपई ]
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वृद्धदत्त उतावल करवा, आप आयौ हा हा हूतौ रे। को दीस नहीं ते कां आपज, तिण ठामै जाइ सूतौ रे॥१७॥ चि० तेहवै ते घायक पण आया, जाण्यो चंपक एही रे। समकालै घाव मार्यो सगले, ढील करां हिव केही रे ।।१८।। चि० पौल बाहिर कूआ मैं नांख्यौ, शरीर लेई नै राते रे । घायक पुरुष थया घणुं हरखत, पांमस्यां दाम प्रभाते रे ।।१६।। कूऔ आव्या दांतण करिवा, निचिन्ता थई तेही रे । पाणी उपरि तरती दीठी, वृद्धदत्त नी देही रे॥२०।। चि० । आनंद पोकार करवा लागा, हा अम्हे स्यु कीधौ रे | ओल्यु करतां थायै पैल्यु, काम न कोई सीधौ रे ॥२१॥ चि० चंडाल करम कीधु अम्हे पापी, अम्हे थया दुर्गति गामी रे । कहइ स्युन करइ लोभी माणस, कहउ स्यूं न करइ कामी रे॥२२।। साधदत्त भाई बात साँभलि, हीयौ फाटनै मूऔ रे। छिन्नू कोड़ि सोनईया केरौ, चंपक ते धणी हूऔ रे ॥२३॥ चि० बारहियौ करि बहु माणस मिलि, घर धणी चंपक कीधौ रे । जेहनै पुत्र नहीं नहीं भाई, तेहनै जमाई सीधौ रे ॥२४।। चि० सहु को लोक कहै छै सरज्यु, ते बोल केता वाचुरे। उद्यम छै पणि भावी अधिकु, समयसुन्दर कहै साचुरे० ॥२५॥ पहिलो खण्ड थयौ ए पूरी, पिण सम्बन्ध अधरौ रे । समयसुन्दर बीजै खंड कहि, संबंध थास्य पूरौ रे ॥२६॥ चि० ॥ इतिश्रीअनुकम्पादाने चंपक श्रेष्ठ संबन्धे प्रथम खण्ड समाप्तः ॥
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