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[ समयसुन्दर रासत्रय हाथी बिना, तं जीव म झाले कोई रे ।
न मिलै तौ ठावौ आवे, विह मान भंग जिम होई रे ॥५॥
चंदन भारौ नै हाथी बेऊ, जो हुं ए थोक न पूरु रे ।
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तौ इण थी झूठी पडु, पछे बैठी मन सु रु रे ॥६॥ उ० बिहु नै बेऊ थोक पूर्व, विधातरा चंदन हाथी रे । मुंहतौ ल्यै बिहुं पास थी, वेची नै मेलै आथी रे ||७|| उ०
• हाथी हजार भेला कीया, चढ़ननी द्रव्य थई कोडी रे । महर्द्धिकीया, पछै मसकंति दीधी छोड़ी रे ॥८॥ हयगय रथ पायक सजी, कटकी करि मथुरा आया रे । वैरी मार दूर कीया, मूलगी बाप नौ राज पाया रे ॥ ॥ वृद्धदत्त विवहारीयो, कहै साधदत्त सुण भाई रे । मुहताना उद्यम थकी, कुयरे ठकुराई पाई रे ||१०|| उ० तिम हुं देखि उद्यम करी, बापांपल सहुकर नाखु रे । माहरौ धन कोई भोगवे, ए बात हुं किमहि न साखु रे | ११ | वृद्धदत्त ते लोभीयौ, उपाय अनेक ते करस्यै रे । समय सुन्दर कहै पणितिहां, फोकट पापै पिंड भरिस्यै रे |१२| [ सर्व गाथा १८७ ]
दू T गाडा ऊंठने पोठीया, भार भरी भरपूर । वृद्धदत्त व्यवहारीयौ, चाल्यो प्रबल पडूर ॥ १ ॥ नगरी कंपिल्ला जाइन, मोटी मांडी भखार | क्रय विक्रय बैठो करें, साह बst सिरदार ॥ २ ॥
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