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[समयसुन्दर रासत्रय वृद्धदत्व नै याचक जाइ, वात सुणावी जी। चंपक नै त्रिलोतमा नारि, काकै परणावी जी ॥४६॥ चं० वृद्धदत्त नै हीया मांहि, दाहज ऊठ्यौ जी। विपरीत वात कही देव हा ! मुझ नै मुठ्यौ जी ॥४७॥ चं० अंगति नै आकार गोपि, ते घर आयौ जी। जांनी मानी जीमता देखि, मन दुख पायौ जी ।।४८।। चं० वृद्धदत्त कहे आणंद, ऊपनौ अम्हनै जी। तुरतसु काम कीधौ एह, साबास तुम्ह ने जी ॥४६।। चं० चंपक सेठ नो मोटो भाग, कन्या परणी जी। समयसुदर कहै ते पूरव, पुण्य नी करणी जी ॥५०॥ चं०
[ सर्वगाथा २८८ ]
.. दूहा वीवाह गाह वौल्यां पछी, वृद्धदत्त कहै आम । रे भाई तें स्यु कीयौ, ए अविचारत काम ।।१।। साधदत्त कहै स्यु करू, तुम्हें मूक्यो मुझ लेख । दोस म. देजे मुझ नै, ए लेख भाई देख ।।१।। वाची लेख विचारीयौ, कुमरी कीयौ विपरीत । होवणहारौ ते थयौ, कही करू कफीत ।।३।। फोकष्टि पिंड पापे भस्यौ, काम सस्यौ नहीं कोइ।
औल्या थी पैल्यु थयु, हुवणहार ते होइ ॥४॥ चंपक तौ चंपापुरी, परण्यौ जाण्यौ मित्र। जान ऊजेणी सहु गई, चंपक चम्पा तत्र ॥५॥
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