Book Title: Samaysara Drushtantmarm
Author(s): Manohar Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ समयसारखष्टान्तमम १०-सामान्यदृष्टिसे आत्मा अनन्य है, विशेषत्रहिसे आत्मा अन्य अन्य है । जैसे-एक मिट्टीके ही होने वाले पिण्ड कोश कुशूल घट कपाल को विशेष, पर्यायकी दृष्टिसे देखें तो सब अन्य अन्य हैं किन्तु एक मिट्टीके स्वभावको मुख्य करके देखें तो सब अनन्य हैं एक मिट्टी है। वैसे नर नारक आदि व क्रोध मान आदि पर्याय: विशेषकी दृष्टि से देखें तो सव अन्य अन्य हैं, किन्तु एक आत्मस्वभावकी मुख्यतासे देखें तो वहाँ सर्वत्र एक विशुद्ध चैतन्य है। ११-सामान्य, परमार्थ दृष्टिसे आत्मा नियत है, विशेष, अपरमार्थ दृष्टिसे आत्मा अनियत है । जैसे-समुद्रको वृद्धि हानि पर्यायकी दृष्टिसे देखा जाये तो समुद्र अनियत है, किन्तु केवल समुद्रपनेकी दृष्टि से देखा जावे तो समुद्र सदा नियत है। वैसे आत्माको वृद्धि हानि पर्यायसे देखो तो आत्मा कभी कम या अधिक मतिज्ञानी है कभी कम या अधिक श्रु तज्ञानी है कमी कम या अधिक क्रोधो है कभी कम ण शधिक शान्त है इत्यादि प्रकारसे आत्मा अनियत है किन्तु सदा व्यवस्थित आत्मस्वभाव की दृष्टि से देखा जावे तो सदा चैतन्यस्वभावरूप नियत है। १२-अमेष्टिमें आत्मा अविशेष है, भेदद्दष्टि में आत्मा विशेषरूप है । जैसे-एक सुवर्णको भी चिकना, वजनदार, पीला आदि भेदोंसे देखा जाये तो सुवर्ण विशेष विशेषरूप है किन्तु अभेददृष्टिसे (जहां कि विशेषकी दृष्टि लुप्त हो गई है) देखा जाये तो वह सर्वत्र एक सुवर्ण ही है। वैसे एक आत्माको ज्ञान, दर्शन श्रादि भेदीसे देखा जावे तब आत्मा ज्ञानरूप, दर्शनरूप आदि विशेष विशेषरूप है किन्तुं अभेददृष्टि से (जहां कि समस्त विशेष लुप्त हो गये हैं) देखा जाये तो वह सर्वत्र एक सामान्य आत्मा ही है। १३-परमार्थ, स्वभावदृष्टिसे आत्मा असंयुक्त, स्वभावमात्र है, अपरमार्थ, संयोगष्टिसे आत्मा संयुक्त, परभावरूप है। जैसे अग्निके संयोगके निमित्तसे होने वाली उष्णपर्यायके सम्बन्धकी दृष्टिसे देखा जावे तो जजमें संयुक्तता है, किन्तु केवल जलके शीतस्वभावकी दृष्टिसे

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90