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श्रय तु कर्माविकारः
परिणाम करना है, यह प्रतीत मन हो ।
- जैसे कुन्दारके व्यापाररूप कुन्दार ही परिणानना है, छः इस व्यापारका कुन्दार ही कर्ता है और वही तो परिणाम है वह कुम्हार का कर्म है और वृन्दारकी जो परिणानि है वह कुम्हारकी क्रिया है। इस कारण कुम्हार विषयक कर्ता, कर्मः क्रिया ये तीनों वास्तव में मिन्न नहीं है | वैसे ही आत्मा अपने पर्याय परिणमना है, अतः उस पर्यायका काही कर्ता है और वही जो परियान वह आत्माका कर्म है और श्रात्माकी जो परिशनि है वह आत्माकी क्रिया है । आत्म विषयक यह व क्रिया ये तीनों वास्तवमें मिन्न नहीं हैं ।
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( २ )
=१-प्रत्येक पदार्थ केवल ला ही तो उस रूप परिणमना है, वह परिणाम उस एकका ही होना है. वह परिणति उस एककी ही होती है, सो ये तीनों प्रतीति मेदमें तो जुड़े हों तो भी एक ही हैं । जैसे कुम्हार के व्यापार रूप कुन्दार ही वो अकेला परिणमना है, वह उस केले कुन्दार काही तो है व वह क्रिया भी इस अकेले इन्दारकी ही तो है । कहनेको कर्तृत्वादि अनेक हैं, किन्तु वास्तवमें एक ही हैं। वैसे ही आत्मा के पर्याय रूप केवल वह आत्मा ही तो परिणमना है, वह परिणाम भी उस आत्मा कालेका होटो है, वह परिणति भी इस अकेले आत्माकी हो तो है । प्रनीनि भेइसे यद्यपि कर्तृत्व, कर्म व क्रिया चे अनेक हैं तो मी वास्तव में एक ही तो हैं |
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२- किसी एक पर्यायरूप हो या अनेक द्रव्य नहीं परिणमते, एक परिणाम दो या अनेक द्रव्योंका नहीं होता, एक परिणति दो या अनेक द्रव्योंत्री नहीं होती । द्रव्य तत्र अनेक हैं तो वे सब भी अनेक दी हैं। जैसे घट पर्यायरूप कुन्दार व मिट्टी दोनों नहीं परिणमवी, घट पर्यायरूप कर्म उन दोनोंका नहीं है, वह परिणति रूप क्रिया इन दोनों क्योंकी नहीं है। वैसे ही यहां भी देखो, ज्ञानावरणादि कर्म पर्यायरूप आत्मा व पुद्गल दोनों नहीं परिणमते, वह पर्यायरूप कर्म दोनोंका नहीं है, कर्मपरिणति दोनोंकी नहीं है । श्रथवा इस ओर देखो, जीवके विभाव पर्याय
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