Book Title: Samaysara Drushtantmarm
Author(s): Manohar Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 37
________________ (३०) सहजानन्दशास्त्रमालायां रूप जीव व कर्म ये दो पदार्थ नहीं परिणमते हैं, वह परिणाम दो का नहीं है, वह परिणति दो की नहीं है। ३-एक पर्यायके दो द्रव्य कर्ता नहीं होते, एक द्रव्यके दो कर्म नहीं होते, एक दून्यकी दो क्रियायें नहीं होती, क्योंकि एक अनेक नहीं हो सकता। जैसे घट पर्यायके कुम्हार व मिट्टी दो कर्ता नहीं हैं, कुम्हारके या मिट्टीके दो कर्म नहीं हैं, कुम्हार या मिट्टीकी दो क्रियायें नहीं हैं। वैसे ही जीव परिणाम के जीव व पुद्गल कर्म दो कर्ता नहीं हैं, जीव या पुद्गल कर्मके दो कर्म नहीं हैं, जीव या पुद्गल कर्मको दो क्रियायें नहीं हैं। फिर एक द्रव्यका दूसरे द्रव्य के साथ कर्ताकर्मभाव कैसे हो सकता है ? नहीं हो सकता । तो फिर प्रात्मा व पुद्गलकर्म इन दोनों में भी कर्ताकर्मभाव कैसे हो सकता है ? नहीं हो सकता है। ८४-"परद्रव्यको मैं कर्ता हूँ" यह अहङ्कार जीवपर अनादिसे छाया है यही महान् अन्धकार है यह मिटे नो इस ज्ञानधन मात्माका पन्धन न हो। जैसे कि अन्धकार मिटे तो चोरोंके द्वारा उपद्रवका भय नहीं होता। वास्तविक वान तो यह है कि आत्मा तो आत्माके भावको करता है, अन्य परद्रव्य उस ही परके भावोंको करता है । श्रात्माके भाव आत्मा ही हैं, परके भाव पर ही है, इस प्रतीतिको दृढ़ करो। ८५-प्रश्न-निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध होनेसे जीव व फर्ममें परस्पर कुछ नो अपनायत होती ही होगी? उत्तर-नहीं, क्योंकि वस्तुस्वभाव ही ऐसा है कि कोई द्रव्य किसी द्रव्यका गुण, पर्याय, प्रभाव आदि प्रहण नहीं करता । हा निमित्तनैमित्तिक सम्वन्ध अवश्य है । सो यह उपादानकी योग्यतापर निर्भर है, कि वह कैसे शक्ति पर्याय वाले पदार्थको निमित्तमात्र पाकर अनुरूप किस परिणमनसे परिणम जाय । जैसे एक दर्पण है, उसमें प्रतिविम्ब रूपसे परिणमनेकी योग्यता है, वह जव सामने मयूरकी सन्निधि पाता है, तो उसके अनुरूप नीला, हरा, काला, पीला आदि रूपसे रेशम जाता है । जो यह परिणमन है, उसे मयूरप्रतिविम्ब वोलते हैं।

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