Book Title: Samaysara Drushtantmarm
Author(s): Manohar Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 82
________________ सर्व-विशुद्धज्ञानाधिकार (७५) नहीं क्योंकि कोई द्रव्य किसी अन्य द्रव्यरूप तो परिणम ही नहीं सकता। इस तरह आत्मा (ज्ञायक) पुद्गलादिकका (ज्ञयका) हुआ नहीं। तव ज्ञायक आत्मा किसका है ? ज्ञायक (आत्मा) ज्ञायकका ही है । वह अन्य • ज्ञायक कौन है जिस ज्ञायक (आत्मा) का यह ज्ञायक (आत्मा) बने ? कोई नहीं, किन्तु कल्पना किये गये स्व-स्वामी अंश ही अन्य अन्य है । इस स्व स्वामी अंशक व्यवहारसे क्या मिल जायगा ? कुछ नहीं । तव निष्कर्ष यह निकला कि ज्ञायक किसीका ज्ञायक नहीं है किन्तु ज्ञायक ज्ञायक ही है ऐसा जानो। . २१३-उक्त प्रकारसे जैसे खड़िया भीटकी नहीं, किन्तु खड़िया खड़ियाकी है। अन्य कोई दूसरो वह खड़िया नहीं जिसकी खड़िया यह हो, सो यह ही सिद्ध है कि खड़िया खड़िया ही है। इसी प्रकार दर्शक आत्मा किसी अन्य पदार्थका नहीं है किन्तु दर्शक (आत्मा) दर्शकका ही है, वह अन्य कोई दर्शक नहीं जिस दर्शकका यह दर्शक हो, सो यह ही सिद्ध है कि दर्शक दर्शक ही है। २१४-इस हो प्रकार जैसे खड़िया याने श्वेतयित्री भीटकी नहीं है। वैसे ही अपोहक यह आत्मा किसी अन्य पदार्थका नहीं है। अपोहक (आत्मा) अपोहकका ही है। इस तरह यह सिद्ध हुआ कि जानना, देखना व अन्य सवसे परे रहना आत्माका ही परिणमन है, इससे कहीं आत्मा परका नहीं हो जाता है। २१५-जैसे यद्यपि खड़िया भीटकी नहीं है क्योंकि खड़िया भींट के स्वभावसे परिणमती नहीं व खड़िया अपने स्वभावसे भीटको परिणमाती नहीं, तो भी भीटका निमित्त पाकर खड़िया अपने इस प्रकारके विस्तृत श्वेतपनेके स्वभावसे परिणम गई और खड़ियाके निमित्तसे भीट अपने स्वभावके परिणामसे दिखने में श्वेतरूपसे वन रही है। इसनिमित्तनैमित्तिक सम्बन्धके कारण संयोग दृष्टिसे ऐसा कहा जाता है कि खड़ियाने भीटको सफेद की। यह व्यवहारका वर्णन है। इसी प्रकार यद्यपि ज्ञायक पर पदार्थका नहीं है, क्योंकि ज्ञायक आत्मापर पदार्थके स्वभाव

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