Book Title: Samaysara Drushtantmarm
Author(s): Manohar Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 81
________________ (५४) समयसारदृष्टान्तमर्म प्रकार निश्चयनयसे तो जीवने अपनी चेष्टारूप आत्मपरिणाम किया व दुःखवेदनरूप निज चेष्टारूप कर्मके फलको भोगा । अतः एक द्रव्यमें ही परिणाम परिणामीभाव होनेसे आत्मा कर्ता, आत्मा कर्म, आत्मा भोक्ता व आत्मा भोग्य हुआ। . २१२-जव निश्चयसे कर्ता कर्म भोक्ता भोग्य वही द्रव्य होता है अन्य अन्य नहीं, तब कोई एक वस्तु अन्य किसी वस्तुका कुछ भी नहीं है। केवल व्यवहारष्टिसे अन्यका अन्य कर्ता भोक्ता है अतः व्यवहारष्टि से अन्यका अन्य कहा जाता है। जैसे खड़िया एक सफेद वर्णवाला स्कन्ध है उसकी व्यवहारसे सफेद की गई भीट कही जाती है। यहां विचार करें कि क्या खड़िया भींटकी है या नहीं। यदि खड़िया भीटकी है तो जो जिसका होता वह उसमें तन्मय होता है जैसे कि आत्माका ज्ञान, इस न्यायसे खड़िया भीटकी होती हुई भीट ही हो गई। किन्तु कोई द्रव्य मिट जाय ऐसा तो हो ही नहीं सकता, क्योंकि कोई द्रव्य किसी अन्य द्रव्यरूप परिणम ही नहीं सकता। इस तरह खड़िया भीटकी तो हुई नहीं। तब खड़िया किसकी है ? खड़ियाकी खड़िया है। वह दूसरी खड़िया क्या है जिसकी यह खड़िया हुई ? खड़ियाकी अन्य दूसरी खड़िया कुछ है ही नहीं याने दूसरी किसी खडियाका अस्तित्व नहीं, किन्तु एक ही खड़ियामे प्रश्नवशात् स्व-स्वामी अंशकी कल्पना की है वही व्यवहारसे अन्य अन्य है । इस स्वस्वामी अंशके व्यवहारसे क्या मिल जायगा ? कुछ नहीं । तब निष्कर्ष यह निकला कि खड़िया किसीकी भी नहीं है, खड़िया खड़िया ही है ऐसा जानो । इसी प्रकार जीव ज्ञानगुणनिर्भरस्वमावमय एक द्रव्य है उसका व्यवहारसे जाना गया पुद्गलादिक कहा जाता है। यहां विचार करें कि ज्ञायक प्रात्मा क्या ज्ञय पुद्गलादिकका हो जाता है या नहीं ? यदि पुद्गलादिक (ज्ञय) का आत्मा (ज्ञायक) है तो जो जिसका होता है वह उसमें तन्मय होता है । जैसे कि आत्माका ज्ञान, इस न्यायसे जीव पुद्गलादिकका होता हुआ पुद्गनादिकमय ही हो' ।। किन्तु कोई द्रव्य (जैसे यहां जीव) मिट जाय ऐसा तो है ही

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