Book Title: Samaysara Drushtantmarm
Author(s): Manohar Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 35
________________ (२८) सहजानन्दशास्त्रमालायां अपना ही परिणमन कर सकता है व भोग सकता है। यदि कोई ऐसा देखे कि अन्य द्रव्यने अपनी भी क्रिया की व और अन्य द्रव्यकी क्रिया कर दी, तो वह मिथ्याहाष्ट है अर्थात् परस्पर सम्बन्ध माननेकी दृष्टि वाला है । मिथका अर्थ एक दूसरेका सम्बन्ध हैं। -प्रत्येक द्रव्यको क्रिया केवल उस एकमें ही समवेन है। कोई द्रव्य किसी दूसरे द्रव्यकी क्रिया कर देता है । यदि ऐसा माना जावे तो उमका रहस्य यह वन जायगा कि एक द्रव्य अपनी क्रियामें भी समवेत है और दूसरे की क्रियामें भी समवेत है। इस तरह तो स्व व परका भेद भी खतम हो जायगा। जैसे कुम्हार अपनी क्रिया (परिणमन) करे और मिट्टीकी क्रिया (परिणमन) करे तो दो क्रिया समवेत होनेसे अव क्या निश्चय है कि यह कुम्हार है कि मिट्टी है । परिणाम यह होगा कि दोनों का अभाव हो जावेगा । इमी नरह श्रात्मासे देखो-आत्मा अपनी क्रिया तो करता ही है, यदि पुद्गलकी भी क्रिया करे तो आत्मा अपनी क्रियामें भी समवेत हुआ और परकी क्रियामें भी समवेत हुआ, अव यह क्या निश्चय हो कि यह आत्मा है या पुद्गल है । परिणाम यह होगा कि दोनों का अभाव हो जायगा। ७६-अनेक पर्दार्थोको सम्बन्ध रूपमें देखनेकी दृष्टि अभृतार्थ है व अहितकर है । इसलिये एक द्रव्यके द्वारा दो या अनेक द्रव्योंका परिणमन किया जाता है। ऐसा कभी मत प्रतीतिमें आवे । जैसे जो कि कलशकी उत्पत्तिके अनुकूल अपनी क्रिया कर रहा है, वह कुम्हार अपनेसे अभिन्न क्रिया (परिणनि) द्वारा अपनेसे अभिन्न परिणाम (व्यापार) को करता है, ऐसा ही प्रतीत होता है, किन्तु वह कुम्हार मिट्टीसे अभिन्न परिणतिके द्वारा मिट्टीसे अभिन्न परिणामको कर रहा है, यह प्रतीत नहीं होना । इसी प्रकार जैसे परिणामको निमित्तमात्र पाकर पुद्गल कर्म बंधता है, वैसे अपने परिणामको करता हुश्रा जीव अपनेसे अभिन्न तके द्वारा अपनेसे अभिन्न परिणामको करता है, यही प्रतीत होओ मात्मा पुद्गलसे अभिन्न क्रियाके द्वारा पुद्गलसे अभिन्न

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