Book Title: Samaysara Drushtantmarm
Author(s): Manohar Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 22
________________ अथ नीवानीवाधिकार (१५) भावोंकी दृप्टिसे देखा जाय तो रागादिक सब नीवके कहे जाते हैं, यह सब व्यवहारनयसे है। ३६-जैसे पानी मिले हुए दूधका पानीके साथ यद्यपि परस्पर अवगाह रूप सम्बन्ध है. तथापि लक्षणोंसे दग्बी-क्षीरत्व गुण दूधमें ही रहता है लो कि पानी में नहीं है, तब दूधका पानीके साथ नादात्म्य सम्बन्ध नो नहीं कहा जा सकता, जैसे कि अग्निका तादात्म्य उष्णताके साथ है; यही कारण है कि निश्चयमे दूधका पानी कुछ नहीं है। हमी प्रकार वर्णादिक व रागादिक पुद्गलदव्यक परिणामोंसे मिले हुए श्रात्मा का यद्यपि पुद्गलद्रव्य के साथ परस्पर अवगाह रूप सम्बन्ध है, तथापि लक्षणोंसे देखो उपयोग (नान दर्शन) गुण श्रात्मामें ही रहता है, अन्य किसी द्रव्यमें नहीं रहता, तब आत्माका अन्य सब द्रव्य व पुद्गलपरिणामों के साथ नादात्म्य सम्बन्ध तो नहीं कहा जा सकता, जैसे कि अग्निका उटण गुणके साथ तादाम्य है, यही कारण है कि निश्चयसे आत्माके वर्गादिक व रागादिक कोई भी पुद्गल परिणाम नहीं है। ४०-जैसे जिस रास्ते में स्थिन धनीको चौर लूट लेते हैं, उस रास्तेमें स्थित होनेके कारण लोग ऐसा कहने लगते हैं कि यह रास्ता लुटना है, यह उपचारसे कहा गया है, किन्तु निश्चयसे देखो तो रास्ता तो उस जगह श्राकाशके प्रदेश हैं सो रास्ता कसे लुट समता, नहीं लुटता। इसी प्रकार जिस जीवमें बन्धपर्यायसे अवस्थित कर्म नोकर्म रागादिक देखे जाते हैं। उम जीवमं रहने के कारण यान सम्बन्ध होने के कारण लोग ऐसा कह देते हैं कि ये वर्णादि रागादि जीवके हैं, यह उपचारसे कहा जाता है, किन्तु निश्चयसे देखो तो नीव तो ज्ञानदर्शन म्यमाव वाला है। अमूर्न है सो जीवके रागादिक वर्णादिक कैसे हो सकते हैं, नहीं होते। क्याकि जीवका ननके साथ तादात्म्य सम्बन्ध नहीं है । क्योंकि लो जिस स्वरूपसे सदा रहे, जिस स्वरूप विना कभी रहता ही नहीं, उसका उससे नादात्म्य सम्बन्ध होना है । सो यद्यपि संसारावस्थामें रागादि वर्णादिका कथंचित् सम्बन्ध है तो भी मोक्षावस्थामें तो नहीं है। इससे सिद्ध है कि

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