Book Title: Samaysara Drushtantmarm
Author(s): Manohar Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

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Page 28
________________ अथ कर्तकर्माधिकारः (२१) पर ही होते हैं, कर्मोदय विना नहीं होते, अतः ये कर्मके परिणाम हैं। जैसे कि दर्पणके सासने कोई रंग विरंगा खिलौना रख दिया जावे तो दर्पणमें उस खिलौनेके अनुरूप प्रतिविम्ब बन जाता है । वह प्रतिबिम्ब खिलौनेका परिणाम है, क्योंकि उस छायाश खिलौनेके साथ अन्वय व्यतिरेक है, याने उस खिलौनेके समक्ष होनेपर ही होता है। खिलौनेके हट जाने पर निवृत्त हो जाता है । इस ही को स्फटिक व डाफ परसे घटा लिया जावे। ५५-कर्म परिणमनका कर्ता कर्म है । यह तो अत्यन्त स्पष्ट ही है । नोकमके परिणाम क्या हैं ? शरीरका किसी स्पर्श, रस, गन्ध, वर्णरूप परिणमना, मोटा पतला आदि रूप परिणमना शरीरका (नोकर्मका) परिणाम है अर्थात् जिन पुद्गल स्कन्धोंका वह परिणमन है, उनका परिणाम है । इनका कर्ता ये पुद्गल स्कन्ध है। जैसे घट परिणमनका अर्थात् कम्वुग्रीवादि आकार व उन उन स्पर्श, रस, गन्ध, वर्णका कर्ता मिट्टी है । जिनका व्याप्यव्यापक सम्बन्ध होता है, उनमें कर्म व कर्ताका व्यवहार होता। ५६-प्रश्न-यदि पुद्गल परिणाम व जीवमें कुछ भी सम्बन्ध नहीं, तो फिर इन्हीं में क्यों सन्देह हुआ ? उत्तर-पुद्गल परिणाममें व जीवमें ज्ञय ज्ञायक सम्वन्ध है, कर्ताकर्म सम्बन्ध नहीं। जीव पुद्गल परिणामका कर्ता नहीं, किन्तु ज्ञाता है । जैसे कि कुम्हार घट परिणमनका • कर्ता नहीं, किन्तु ज्ञाता है। ५७-प्रश्न-जीव पुद्गल परिणमनका ज्ञाता ही सही, इस प्रकार भी तो ज्ञाता जीव व्यापक हो गया व पुद्गल परिणाम व्याप्य हो गया ? उत्तर-नहीं, पुद्गल व आत्माके ज्ञ यज्ञायक सम्बन्ध होनेपर भी जीवमें पुद्गले परिणाम व्याप्य नहीं है, किन्तु पुद्गल परिणामको विषय करके जो पुद्गल परिणाम विषयक ज्ञान हो रहा है, उस ज्ञानके साथ उस समय जीवका व्याप्यव्यापक भाव हो रहा है। जैसे-कुम्हारका घट परिण'मनके साथ व्यापकव्याप्य सम्बन्ध नहीं है, किन्तु घट परिणामको विषय

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