Book Title: Samaysara Drushtantmarm
Author(s): Manohar Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ सहजानन्दशास्त्रमालायां है, इंधन इधन है" ऐसा अग्निमें ही अग्निका ज्ञान करे तब वह उरा विषयका ज्ञानी कहा जाता है। (इसी तरह भूत भविष्यके भी उदाहरण लगा लेना)। वैसे-"मैं यह हूं, यह मैं है, मेरा यह है, इसका मैं हूँ, मेरा यह पहिले था, इसका मैं पहिले था, मेरा यह आगे होगा, इसका मैं आगे होऊंगा" इस प्रकार परपदार्थ और आत्मा जुदा होनेपर भी जब तक परपदार्थमें आत्माकी असद्भून कल्पना है नव तक वह अज्ञानी है और जब तक "मैं यह नहीं हूं, यह मैं नहीं है, मैं मैं हूँ, यह यही है, मेरा यह नहीं था, इसका मैं नहीं था, मेरा मैं ही था, इसका यह ही था, मेरा यह नहीं होगा, इसका मैं नहीं होऊगा, मेरा मैं ही होऊंगा, इसका यह ही होगा ऐसा निज आत्मामे ही आत्माका यथार्थ ज्ञान करे तब वह ज्ञानी हो जावेगा । हे आत्मन् ! पर पर ही है उसका मोह छोड़ो। २०-जैसे एक स्फटिक पापाण स्वच्छ है तथापि उसके समक्ष यदि नाना प्रकारके रंग वाले उपाधिभून पदार्थ समक्ष हों तो स्फटिकमें नाना प्रतिविम्ब हो जाते हैं। ये विचित्र प्रतिविम्ब वास्तवमें स्फटिकके. स्वभाव तो हैं नहीं, तो भी जो अविवेकी इन्हें स्फटिकके स्वभावभाव ही मान बैठे तो वह अज्ञानी है । तथैव यह आत्मा स्वभावसे तो स्वस्वरूप रवच्छ है तथापि जब तक नानाकर्मोदयकी उपाधिका निमित्त है तब तक इस आत्मामे नाना विकार होते हैं, वे विकार आत्माके स्वभाव भाव नहीं है, तो भी जो इन्हें स्वभावभाव स्वीकार करता है, पुद्गल द्रव्य मेरा है ऐसा अनुभव करता है तब तक वह अज्ञानी है। २१-हे आत्मन् तू ज्ञानमय है ज्ञानका ही स्वाद लेता है, ज्ञयको नानकर ऐसा भ्रमसे क्यों मानन करता है कि विषयका स्वाद लेता हूं जैसे कि कोई हाथी अविवेकसे घास और हलुवाको मिलाकर ही खाता है वह हलुवाका स्वाद पृथकसे लेना समझता ही नहीं। २२-हे आत्मन् ! जैसे नमकका जल और जलका नमक वन जाता है क्योंकि क्षारपना दोनों दशावोंमें रहता है । वैसे-यह नहीं समझ । कि पुद्गलद्रव्य जीवद्रव्य बन जावे और जीवद्रव्य पुद्गलद्रव्य वन

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90