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संभायं
- पहिलासमाधि
उलीश
नव वर्ष सहसहस्र॥
सहारनउम ज के लाइक सम्यक जीवमवसवग्रहण नवतनांतरे ॥ सीकस्पा
इछ।
बूकस्पई सर्वस्वन तक रिस्प॥
वाराहहिंग्राहार' म्बई संयास सिरिया की वाडीजवहिं नवमाहिं सिशिस्सं वाममधिकारनिषादोका मा मुक्तिनि आर्जनमा माननिय लाघवदलु पधानात् - इतिन व मवासिम ||२०|| रेशम कही साधर्म निग्रह सियानियह माईक पा रहा ही ४ की जागा खर
कहर ||
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तिडादंड रकाएाञ्चतिक रिस्संति २०" दसविरहसमरापेतं खंती सुत्री माधव सच्चे६ समर नपर नाहारा ब्रह्मचर्यन दिखें। प्रकारेण दत्यादि॥ गः साफ़ दे
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दाप्रकारें चितनामनां समा॥ि धर्मादिताजी वादिवाक पदार्थ 43 पत्रमा स्वाभञ्चाश्रय श्वतेन मनि
चित समाधानका कारण का पतन ह बहिर्मनात हवी है। सत्य संकरमप्रताव विद्यागरण बंनवेश्वारसर सचितसमाहिताणादिनादा रस समुप्पन्नखच्द्दा सम
नितीश कालमधर्ममा ताजिनामा कस्या भी प्राप्ति हास्यति मिश्री महाबलीशनि तापमान सर्वधमीजास्त मुन्यन्नका दीनही स्वामिस्वपापापना केवलज्ञानप वैवाश्रनयां विश्जा परियासिनो झाई करे पान राईक
फलामजानिसमाधिदाम
का मोक्ष जाणहार न देषी दिन समाधिपा
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पद्या सहधम्माता सुमिदं सवार पत्र पुढे समुपविद्या प्रदान सुमिणं पासितयंस
संकी काम से दिसमास्वानासनद्रा की यदि कान का विस्मर एक होय से कहतो नमादेवदर्शनसे कहतीजे 53 पतेहस्य उपजे दिव्यमान पूर्वकमनस्क पूर्व मान पूर्व दसरा हा देवनानी कहिपरिवाररूपप्रधानदेवतानी | संगउपजात्रा विनासमाधिस्वामक ॥३॥ छतिः विशिवाराराराष
त्रिवागे दासे प्रण समुपविशुम देव सदा समुप्पनछाह समुप्प