Book Title: Samavayanga Sutra
Author(s): Sudharmaswami, Hirsundar Muni
Publisher: Jaiselmer
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पकनिनायशायाही एमवणानामाUSTी विधवाधिकभीषरूप नहष्वाना पहायक गणकाता राषपाइयक्तिकरीता जाणवणतेपांचमहामान्य मानिहाकतीयाकहीय हवाबाचायने कशासपिका
हाइपेटी नवासिणि शिविलिदेशिकंपिमा एवंविस्मातेधारणकशापवणाशयवितिसतदिहिया सिसवालसंग नाव: नकर मीथा माझागयज्ञमामाधार्थन माग काल अनंता जी प्राकामा विशधीचमीच्यारतक्षमारकादिकम समान पेटीसमानायरन
न
लकणयहवनसंसारकासाश्म क-त्यादिक
स्नयवासस्पति लिपिडगतो सवालसंग गणिपिडांप्रतीतेकालांतानीवानाणाएविशक्षिताचावरंत संसारकंडारश्र अनुपरिष्टतम यहादन गणिपिटक वर्तमान काल परिता जीव॥ श्रागा विराधी हावरंत। संसारकेता अनुपरा सिमसाधा प्रति॥ संरया मनुष्य नम
२१निवतिसमा ता॥
- त्यपरिसिवानसंगंगणिविममुप्पणकालपश्तिाजीबाप्राणापविशहिताचावरत संसारकंसार यह शगनांग गणिपिटकन अनागत कास॥ श्रनंता जीवा श्राज्ञान विराधी परंतसंसारकतारखतिई। सविष्प३॥
ना परियतिइयंडालसंगणिपिया अलापनेकठिनाताजीमानाणाएतिराहिलावामरतसंसारकंतार यस समस्पर। यहादशांग गणिपिटकाप्रति शीतकहता असा जावाका शाराहामा चाउरंग संसारकंतास
गयकावा न ।
सि. मणुपरियति इञ्चयंऽवाससंगणिपिडग शालीमसेकाले माडीयाचारायशिक्षिताधाचरेतसंसारकेता

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