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भारतीय तत्त्व-चिन्तन एवं जीवन-दर्शन की अनन्त ज्ञान-ज्योति इन छोटे-छोटे सुभाषितों में इस प्रकार सन्निहित है, जैसे छोटे-छोटे सुमनों में उपवन का सौरभमय वभव छिपा रहता है। उसे जन-जीवन को आलोकित करने के लिए उपाध्यायश्री ने प्रस्तुत ग्रन्थ श्रम एवं निष्ठा के साथ संकलित किया है।
तीनों धाराओं के चिन्तन में कुछ भिन्नता भी है। लेकिन, इतना तो दृढ़ आस्था से कहा जा सकता है कि तीनों-धाराओं की जीवन-दृष्टि मूलतः एक है और नैतिक एवं आध्यात्मिक अभ्युदय के उच्च आदर्शों को लिये हुए राजतन का कमाऊनी कहें कहें पीरलीकत केला है, कह की एकान्त नहीं है। चोद व्यापक दोष्ट
से देखें, तो एक अखण्ड जीवन-दृष्टि एवं चिन्तन की एक रूपता भी परिलक्षित होती है। भावात्मक एकता के साथ शब्दात्मक एकता के दर्शन करना चाहें, तो अनंक स्थल ऐसे हैं, जो अक्षरशः समान एवं सन्निकट है।
प्रस्तुत संकलन में उपाध्यायश्री ने इसी व्यापक एवं उदार समन्वयात्मक-दष्टि को सामने रखा है। अतः जीवन-विकास के लिए प्रस्तुत ग्रन्थ, जो डबल डीमाई साइज में लगभग ८०० पृष्ठों का है, अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।
महामहोपाध्याय पद्मभषण गोपीनाथ कविराज, आगमों के सुप्रसिद्ध विद्वान पं० बेचरदासजी दोशी, स्व० राष्ट्रपति जाकिर हुसेन, आचार्यश्री तुलसी, युवाचार्यश्री महाप्राज्ञ आदि विद्वानों द्वारा प्रशंसित है।
अभी भी गुरुदेव की साहित्य-साधना की धारा अनवरत गतिशील है। प्रज्ञामूर्ति महान् साहित्य-स्रष्टा के चरणों में शत-सहस्र अभिवन्दन-अभिनन्दन ।
___ - मुनि समयी , प्रवाकर
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