Book Title: Sagar Nauka aur Navik
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 12
________________ महापुरुषों एवं दृढ़ विश्वास के साथ सत्य की साधना के पथ पर गतिशील प्रबुद्ध पुरुषों के जीवन का यथार्थ चित्रांकन किया गया है इन काव्यों में। स्तोत्र-साहित्य : १. भक्तामर, २. कल्याण मन्दिर, ३. वीर,स्तुति, ४. महावीराष्टक का हिन्दी अनुवाद भी महत्त्वपूर्ण है। निबन्ध-साहित्यः १. आदर्श कन्या : नारी का जीवन कैसा होना चाहिए। इस के लिए सही दिशा-दर्शन मिलता है प्रस्तुत पुस्तक में। २. जनत्व की झांकी : प्रस्तुत पुस्तक में सैद्धान्तिक दृष्टि से जैन-धर्म का संक्षेप में सांगोपांग विवेचन है। ३. उत्सर्ग और अपवाद-मार्ग : जीवन, जीवन है। भले ही वह महान साधक का भी क्यों न हो। अतः सदा-काल एवं सर्वत्र एक-सा आचार-पथ नहीं रहता। देश-काल एवं परिस्थितियों के अनुरूप आचार का मार्ग परिवर्तित होता रहता है। अपवाद में कुछ नियमों का उल्लंघन भी होता है, फिर भी वह मार्ग ही है, उन्मार्ग या कुमार्ग नहीं है। जीवन एवं साधना के सहज रूप को प्रस्तुत निबन्ध में स्पष्ट किया है। ४. महामन्त्र नवकार : इसमें मन्त्र की विशेषता का सांगोपांग वर्णन एवं सभी दृष्टियों से विवेचन किया गया है। ५. समाज और संस्कृति : सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से व्यक्ति एवं समाज के विकास एवं आध्यात्मिक अभ्युदय के लिए प्रस्तुत पुस्तक में गंभीर विवेचन किया गया है। ६. चिन्तन की मनोभूमि : प्रस्तुत विशाल ग्रन्थ नाम के अनुरूप कविश्रीजी के गहन अध्ययन, गंभीर चिन्तन एवं उदात्त विचारों का कोष है। प्रस्तुत ग्रन्थ में चिन्तन का विषय जीव भी रहा है और जगत् भी, आत्मा भी रहा है और परमात्मा भी। परन्तु सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि धर्म, दर्शन एवं अध्यात्म की मनोभूमि से जीवन का सर्वांगीन सत्य इसमें उद्घटित हुआ है। महान् साहित्यकार सेठ गोविन्ददासजी के शब्दों में--'प्रस्तुत ग्रन्थ अपने जन-हितकारी दृष्टि कोण के कारण, जो भारत के मानव का दिशा निर्देशन करता है, सामान्यतौर से भारतीय-दर्शन और विशेष कर जैन-दर्शन में अपना विशिष्ट स्थान रखता है।" समय-समय पर आध्यात्मिक, सामाजिक, नैतिक, दार्शनिक एव शास्त्रीय विषयों पर लिखे गये लेख जीवन को सही दिशा-दर्शन एवं नया मोड़ देने वाले हैं। सुविश्रत दार्शनिक विद्वान् श्री बलदेब उपाध्याय के शब्दों उपाध्यायजी की दृष्टि पैनी है तथा लेखनी अर्थबोधिनी है। फलतः यह ग्रन्थ जैन-धर्म को सांप्रदायिकता के संकुचित क्षेत्र से ऊपर उठाकर विश्व-धर्म की विशालता पर पहुँचा देता है। व्याख्या-साहित्य: १. सामायिक-सूत्र और २. श्रमण-सूत्र आवश्यक सूत्र साधना के लिए महत्त्वपूर्ण है। सामायिक एवं प्रतिक्रमण जीवन-साधना के लिए, समत्वभाव में रमण करने के लिए अत्यावश्यक है। समत्व की साधना में कहीं स्खलन न हो, और स्खलन हो जाये तो उसकी शद्धि के लिए प्रतिक्रमण--आत्म-निरीक्षण आवश्यक है। प्रस्तुत उभय ग्रन्थ सामायिक एवं श्रमण सूत्र के भाष्य है। समत्व-योग एवं आत्म-निरीक्षण की साधनाओं पर अनेक दृष्टियों से विस्तृत विवेचन किया है। चिन्तनशील प्रबुद्ध साधकों के लिए दोनों ग्रन्थ पढ़ने एवं चिन्तन करने योग्य हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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